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हा विद्या कहा जाता था।
प्राकृत पैंगल (१९७८) में दोड़े के २३ भेद माने गए है। वर्ष के गुरु लघु आदि के विवेचन में भी दोडे का परिचय मिल जाता है। इन मेदों में विप्र, अमर, ग्रामरादि प्रसिद्ध है। मात्राओं की दृष्टि से भी दोहे में वैनिय मिलता है। हेमचन्द दोडे मैं १४ १२ मात्राएं मानते है। प्राकृत पैलम में दोड़े पहले और तीसरे पद में और ११ + ११ मात्राओं का विधान है। इसमें पद की समाधि पर यति मद में हो। मात्रिक गर्यो में
१३
का नियम है। इस
और
का क्रम माना गया है।
विष बरवों के प्रारम्भ में जगण नहीं हो, और अन्त में
लघु हो। इस प्रकार
वर्ष जिसमें होगें उसे विप्र कहा गया है।
किया
दोडा हद की व्युत्पत्ति कैसे हुई यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। परन्तु अनुमानतः इसकी व्युत्पत्ति पर विचार अन्त जा सकता है। हेमचन्द्र के व्याकरण में वि के नाम से मिलती है उसमें दोड़ों शब्द की व्युत्पत्ति दोष से मानी गई है। कुछ विद्वान दोहा की व्युत्पत्ति विषथा से भी मानते है विदेशी विद्वानों-वाकोवी, कार्य आदि ने भी दो की व्युत्पत्ति पर अपने अपने विचार उलट किए है
•
स्पष्ट नहीं हो पाता स्वावन में यदि
म उनके बोदा के उद्भव का दोहा की सुत्केलाको
बा
यो नि होगा। का वही में दोवा बनता है।
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(ब) मा कृपा की कृषि के वार
1- वही,
वेद के व्याकरण
में, किडामणि और ढोला दोहों में इसकी भाव वान योगमा अरूप में प्रभावित हो हिन्दी का भाविका डा० कारी प्रसाद दिववेदी पृ० १०३ की प्रकृतिवादी में और दोहा अप माषा स्वाद के रूम में है। वह नवी दसवीं शताब्दी मका में नई बात यह है कि इसमें एक मिलाए मिठाने की प्रथा नहीं थी । दोहा यह पहला ने का अवसर बौर आगे चलकर एक भी ऐसी अपय एक मिलाने की प्रथा न हो। वही ० ९३ ।
० ९९।