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8 काकनचि चउपर
१५वीं शताब्दी में देव सुन्दरसूरि शिष्य विरचित एक कक्क परम्परा की कृति काकवंधि चउपs उपलब्ध होती है। रचना चोपाई छंदों में है तथा पूरी कृति ६९ कड़ियों में लिखी गई है। कवि के विषय में कुछ भी प्रमाण नहीं मिलता। क्योंकि रचनाकार ने कृति के प्रारम्भ में ही देवसुन्दरसूरि का पद नमन करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि रचनाकार कोई देवसुन्दर सूरि का शिष्य ही रहा होगा ।
पूरी रचना कक्क पद्धति में लिखी गई है। और इसकी पद्धति भी सालिम कक्क की मांति क का, ख खा, ग गा, आदि हरएक व्यंजन को दुबारा प्रस्तुत करने की ही है। काव्य की दृष्टि से १५वीं शताब्दी की रचना होने पर भी कृति बहुत महत्व पूर्ण नहीं लगती भाषा के क्षेत्र में इसका अवश्य महत्व परिलक्षित होता है। कक्क पद्धति का कवि ने फिल निर्वाह किया है। कुछ उदाहरण देखे जा सकते है:
वर चित्ति नाम एवडा वित्ति अक्षुरसि पूरिय घड़ा
परत जु चाभि पहन जिड़, चढइ सिखा नवि पड़ड़ इकु बिंदु
बाet gefa उबर नवि होड़ दी पात्रि दान गरे
वीर थाल दी संगम वालिद सोइ तिमद (४-५)
प्रस्तुत रचना मी धर्म प्रचारार्थ किसी गई है जिसमें कीम जैसे संयमी पुरुषों क्या
जिनवर, अरिहंत देव धर्म वादि पर प्रकाश डाला गया है। मूले मन को सिवावन
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धर्म करने की ओर प्रेरणा, संसार की स्थिरता तथा कर्मों की गति पर विविध
दृष्टान्तों द्वारा प्रकाश डाला गया है। मन को सिखावन देखिए:
करत धर्म मन मूला उमर मानस मन कोई बालि निगम दान की तपमान सार, गुरु वयण पाला सविचार
१- आपण कवियो भी के०वा० शास्त्री पृ० २९३ १
नहीं।