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रचनाओं को पुरानी हिन्दी की सम्पत्ति समय कर हिन्दी साहित्य की सम्पन्नता स्पष्ट करने का प्रयास किया है। (३) पुराने प्रमों का निराकरण:
प्राचीन राजस्थानी और चूनी गुजराती को अलग अलग भाषाएं कहकर उनकी अनेक कृतियों को हिन्दी की श्रीमानों से बाहर निकाल दिया गया था साथ ही गुजराती लिपि में रप जाने के कारण उनी हिन्दी कह सकना समीचीन नहीं समझे जाने की जो प्राति अब तक प्रबलित रही है, उस धारणा कालेस ने निराकरण किया है तथा अनेक गुजराती लिपि और भाषा में प्रकाशित प्राचीन राजस्थानी की कृतियों को हिन्दी में स्थान दिया है। यद्यपि १५वीं सताब्दी से पूर्व प्राचीन राजस्थानी सया जूनी गुजराती एक ही मागधी इस तथ्य को अनेक विद्धवानों ने अपने अन्धों वारा सिद्ध कर दिया है। ० विविध बाध्य सः
मादिकाल के हिन्दी जैन साहित्य में जो विविध काम कम उपलब्ध होते है उन सबकी परम्परामों का विस्तृत परिचय प्रस्तुत प्रबन्ध में दिया गया है। जिससे उमके उद्यमय और विकास की कहानी स्पष्ट हो सके। (५) प्रामाणिक हस्तलिखित प्रतियt:
प्राचीन हस्सनिति एवं प्रामाणि कृतियां क्या उनकी प्रतिलिपियों पर ही इसमें प्रकाश डाला गया है पर्याप्त पौलिक सामग्री पर्व भवीन पान्ड शिपियों का उपयोग पलायो अध्ययन की शिविरमा मिस करता है। (0) नई स्थापना
देसी भागावों उपवन मापारी की सीमाएं, भाविकास का नामकरण, गामडी और सीमानों पर प्रकार गलने का पहला मौलिक प्रयास हीदी की पानी प्राचीन राजस्थानी, जूनी गुजराती, अग, माली, माविपीयों का समावेश र माविकास की सीमा निर्धारण *•.... . या गया है। जिससे उतार पांच से परि पूर्वक
म समीयों का माहार हो ।