________________
४७
(३) ST० शिव प्रसाद सिंह के शोध ग्रन्थ में एक अन्य असंगति यह भी परिलक्षित होती है कि संक्रातिकालीन ब्रज भाषा अध्याय के अन्तर्गत जिन रचनाओं का परिव दिया है, उदाहरणार्थ जिन पद सुरि का स्थूभित्र फागु, विनय बंद सूरि की नेमिनाथ चपई आदि, वास्तव में ये रचनाएं व्रज भाषा की एक दम नहीं है। ये दोनों रचनाएं संक्रातिकालीन तो अवश्य ही है परन्तु प्राचीन राजस्थानी या जुनी गुजराती की है। इस प्रकार इन कुछ असंगतियों को ठीक किया जा सकता है। इन प्रयों का निराकरण लेखक ने प्रस्तुत ग्रन्थ में करने का प्रयास किया है। जो भी हो, मयावधि मादिकाल पर प्राप्त ग्रन्थों में डा० शिव प्रसाद सिंह की यहकृति एक मौलिक में पक्ष और श्रम सापेक्ष वैज्ञानिक बोध है जो आदिकाल के नये वथुथों का मार्ग दर्शन करती है।
अन्य सामग्री:
इन कृतियों के साथ साथ और भी कई लेख तथा छोटी छोटी कृतियों प्रकावित रूप में प्राप्त है। इन कृतियों के अतिरिक्त भी आदिकाल के सम्बन्ध में कुछ शोधपूर्ण फुटकर निबन्ध विभिन्न विद्वानों द्वारा लिये गए है। इस सामग्री में प्रमुख है:
(२९) श्री आर
नाहटा के लेव
श्री अगरकद नाहटा ने भाविका की सामग्री, आदिकाल की विभिन्न कृतियां प्राप्त सामग्री का परिचय तथा वीरमाथा काल की कृतियों की सार्थकता
•
सार्थकता, प्रवीराज रासो की प्रामानिकता तथा वीरगाथा काल का माया
क
साहित्य, प्राचीन राजस्थानी साहित्य और उसकी कृतियां, दाब, का, प्रबन्ध-चरित, गीत, स्त्रोत, वन, तलहरा, सत्यवस्तु, विवाहले मंगल, आदि के लेवों के विकास को समझने में असाधारण बहायता मिलती है। इन लेखों में नाहटाजी मै प्राचीन रामस्वामी वीर मी मुजराती की कृतियों का निष्पक्षता से मूल्यांकन कर हिन्दी की सम्पन्नता में की इंद्रिय की है।
१. उदाहरणार्थ- भरतेश्वर बाइबली रास, त्रिभुवन प्राचीन कुर्जर काव्य, गुजराती भावानों देवि का दे।
दीपक प्रध, नरनारी संबोध, इतिहास बाद क्या प्रोब्वेलणकर