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नेमिनाथ free
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१५वीं शताब्दी के उत्तराध में विवाहलों संज्ञक रचनाओं में कवि जयसागर द्वारा लिखित एक रचना नेमिनाथ विवाहलत मिलती है। प्रस्तुत रचना अप्रकाशित है तथा अभयजैन ग्रन्थालय बीकानेर में संगृहीत है । जयसागर १५वीं शताब्दी के उत्तराध मैं बड़े प्रसिद्ध जैन कवि हुए है जिन्होंने विविध विषयक अनेक काव्य रूपों में रचनाए की है।
प्रस्तुत विवाहले में कवि ने नेमिनाथ और राजुल के पाणिग्रहण विछोह का वर्णन किया है। प्रारम्भ में कवि नेमिनाथ के वंश परिवार का विस्तार में परिचय
देता है। रचना की भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है। पूरी रचना २६ छंदों में पूरी हुई है। कविवेलि या विवाहलो की मंगल सूचक परम्परा का परिचय प्रारम्भ में ही दे देता है:
जादव कुल सिर तिलाए, गंगाजल निरमल गुण निलार
लोयण अमिय निवेसूर व गाइनु नेमि जिनेसूए
सोरिय पुरि र
सिरि समुद्र विजय नरनाडूए
शिवा देवी वसु वर धरण घर मंडणि माण ठपण हरिणि (१-२)
प वर्णन, after वर्णन आदि कवि ने साधारण ही किए हैं। रचना में काव्यात्मकता
.
अधिक नहीं है परन्तु पाका अत्यन्त सरल है तथा शब्द चयन माधुर्य पूर्ण है। कुछ उदाहरण पठव देखे जा सकते है:
नेमिनाथ का रूप वर्षन
नेमि नाम अभिरामू ए, सो बाधइ कुँवर कि कामू ए
म मामतिरि वरिय, क्रमि यौवन वय वनि संचरि
धवल व बहुपरे, मुडि लाट बोलइ बुहिर सरे हरि करि सामरि जो वसिय जमि सोइ सोहसिय रंग रंग रति बागल र बल बुद्विध कला जल वाढलउ प मुगमण मणि मंढा ए गंभीरिम धीरिम धारु ए (४-६)