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कासमीर मुख मंडण माडी, तू समी जगि न कोई पिराडी गीतनाहि जिम कोइल कूजइ तू पसाई सवि कुतिग पूजइ भारती भगवती एक मागू चित्त पाढव तणे गुणि लागउ आपि मू वचन Î रसवाणि हूँ करउं जिसि प्राकृत वाणी
पंच पंडवि बर्नहरि विमासि तेरिवरस कैमि गमेसि नारद ने पान्डवों को मध्यप्रदेश में रहने को समझाया। बेजड़ी में वस्त्रों को छिपाकर देव रूप को त्याग कर सब विराट के यहां पहुंचे तथा पाचौं पान्डवों व द्रौपदी ने अपना वेश नाम व कार्य छिपाकर कृत्रिम कार्य व देश तथा नामों का स्पष्टीकरण किया है वर्णन की सरलता देखिए:
खेजड़ी सिहिरि शस्त्र नियुंज्या, देवरूप बलि मंत्र प्रयुज्वा
हुपदी रहई ते मति आलीग्या विराट नृप मंदिर चाली पाणि पुस्तक सुबर्ण जनोई रूपर्वत पह बंधण कोई
जी विराट नृप चित्ति विभास, विप्ररूप नृप वा इम पासइ
हूं युधिष्ठिर सभासद विन, तूं यधिष्ठिर नरेश्वर मित्र
पाच पान्डव वनासरि माठा, वा हरई सरणि तु अच्छे पठा
दूत लक्षण कला सबि जाई, मूं हरई इसि राज पराज
प युधिष्ठिर नरेन्द्र बूयार नामि वल्लम भुजाबलि द्वार हपदी तु चनावण हार, ए बृहन्नट कला सिणगार reads vs वीर नकीज, अपव विदूय सथली हरइ डईइ trend you गोरवाल, पात्र घरि यह गोवाल पंच र पुरुष लोक प्रसिधा मान्डुपुत्र रिदि समुद्धा
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व पार्थ पुरंद्री
कवि ने हैरन्ध्री बनी द्रौपदी का सौन्दर्य वर्णन किया है। कीचक उस पर मुगु हो जाता है। उसके बसाधारण सौन्दर्य को ने सबको चकित कर दिया उसके सौन्दर्य की महकिकता देखिय: