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विराट पर्व': (शालि सूरि) सं० १४७८ से पूर्व
विराट पर्व पान्डवों की बरित कथा है जिसमें बनवास भोगने के बाद पान्धवों का १ वर्ष तक अज्ञातवास का वर्णन है। यइयपि कवि ने कृति में चरित नाम कहीं नहीं दिया। पर्व नाम से महाभारत के पर्व का स्मरण हो उठता है। अतः पर्व सर्ग विभाजन के लिए शब्द है। अतः काव्य की कथा वस्तु के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह विराट पर्वपान्डवों के जीवन का एक छोटा सा पर्व है, जिसे उन्होंने विराट के यहां रहकर बिताया था।
पूर्णिभगच्छ के गुरु मेरि के शिष्य श्री शलिसूरि में इस कृति की रचना की है। कृति अहमदाबाद के पास सनंद नामक ग्राम में लिखी गई है। इसकी प्रति में पत्र है जिसकी प्रतिलिमि वि० १६०४की मिलती है। कवि ने अपना नाम स्पष्ट कर दिया है.
आणि विराट चिटु पाण्डव हवं पूरि
कीधर कवित्त इह कृति मि शालिमसूरि अतः यह स्पष्ट है कि कृति हर्षपुर में लिखी गई है। कृति का काल निर्धारण इसके समकालीन लेखकों द्वारा विराट पर्व के उद्धरणों को उधत क से से निश्चित हो जाता है कि १५वीं शताइदी का उत्तराईध ही अर्थात १४७५-७८ के पूर्व ही रहा होगा। क्योंकि मा मिल्म सुन्दर सूरि ने इसके उधरण दिए है जिसका समय सं० १४७८ है।
विराट पर्व प्रबन्ध शैली पर लिखा हुआ एक बहुत बड़ा काव्य है जो १२ कड़ियों में लिया हुआ है क्या बस्तु पौराणिक है या जैमेवर शालिमा मूरि के प्रसिद्ध चरितमूलक रामथ पैच पंडव बरित राम के पश्चात् यही एक ऐसी कृति है जिस शालिमूरि ने बड़ी क्षमता 'समाला ति को भाइयोपान्त अनुशीलन करने
1-र राबावीपीयो०षस सी-१८ ० ४.४।