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वय अवर जिम के तिहि मिलीया, सुंदर परम ब्रह्मासि मिलीया इस वर्जित विलसति रसि जु मनि जिण बरिय मु/दिहि, कुन मति
पुणइ सुणई आदिति का मंगल नित इति (९१) वस्तुतः कृति में कवि ने रासु, अउ, फाग रास या रामो आदि छंदों में रचना की है। साथ ही बीच बीच में कवि ने संस्कृत श्लोकों में अनुष्टप, माया, शार्दूलविक्री ड़ित, शिखरिणी आदि संस्कृत छदों को भी प्रयुक्त किया है। कृति की भाषा प्राचीन राजस्थानी है बीच बीच में अपच के पी अब्द माये है। पदावली सरल है। साथ ही कवि ने अलंकारों का स्पृहणीय वर्णन क्यिा है। आतर यमक प्रमुख अलंकार
कृति की क्या वस्तु सरल है नायक राजवंशी है जिसका मन्तब्य आध्यात्मिक संदेश है। मुख्य उद्देश्य कवि का नेमिनाथ का चरित सरस रागों वा डालों में संगीतबद्ध करके जन मात्रा में उनके उत्तम आवरों का प्रचार करना है।
क्था काव्य अहंडित रूप से समाप्त होता है। कवि ने वर्णनों में यथार्थता का प्रयोग किया है। ली भित्र है तथा पदावली कोमल कात है। भाषा में अपूर्व प्रवाह है। कवि ने बीत की बहारों से लेकर निद का जीवन्त वर्णन किया है। १५वीं शताब्दी के चरित काव्यों में मेमिनाथ चरित फाणु बंध जैली में हिल गए कायों में उत्कृष्ट काव्य है। कवि मे मुन्दर रूमक, उत्प्रेवाएं, उपमाएं, और विविध अलंकारों का स्वाभाविक वर्णन किया है।
कहना न होगा, माणिक्य सुन्दर पूरि का विस प्रकार का स्पृहणीय काव्य पशवीन्द्र वाबिकास है वैसा ही षड्यात्मक कृतियों में मेमिमा चरित फागुबंध