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का वर्णन किया है नो पाषाको सरस बनाते है। जहां कवि अपने वर्णनों में अधिक उपदेशात्मक हो जाता है वही अनेक विक्षया आ जाती है:(.) गे विधि लिख्यो न मेटइ कोड (0) (२) नहि राज भोग महि होइ, पुन्ना नरु उपना मुर लोई (२२२) ७) नीची इधि शिम्बरस निहरड, उत्तिम ओडि नीच सँगइ (१५८) ४) तिरिय विसास करइ जो पपर, जिहि नि सोप्यो राजा र
पूर्व ररित न मेटन कब (0 चरी मागत भोजन करइ
असुह मे नह भेटइ कोइ। 0 बापन उ लालची होग, बहुत साइ जाप सा कोई (७) नाटकीय गिमा संधिया ज्या अर्थ प्रकृतिया
प्रशम्न बरित में पारस्परिक वाद- जबसवर प्रयन संवाद, कृप समणी व कृय प्रद्युम संवाद में एक नाटकीय लाप की पुष्टि होती है, जिसमें नाटकीय गिमा पा सकते है। साथ ही क्या में एक अम बीज, किन्द, पताका, प्रकरी और कार्य त्या भारम्भ प्रयत्न प्राप्त्याग, नियवामित और लागन माथि का क्रम मिल पाया है। मनुः था बस्तु ने इन लायषिक बत्यों का समाहार भी कवि ने इस कार्य काव्य में किया है। अति प्राव था मौलिक सत्य:
____जन पास काम की अभिव्यक्ति को तीव्रतर व प्रभावशाली बनाने के लिए काम थाक में अति प्रा शा ी किक दैवीय शक्तियों का भी काम सारा लिया है। सब खगों गे नायक मंत्र पुगध की मावि क्सभित कर विजय प्रान करता है। कानुशार र बनाकर ही गो वही प्रक्ट होना, अडाम होगा, मकवानों के विभिन्न प्रकार की दृष्टि होमा, अनेक विमानों
या मंत्र व भादि के प्रभाव के सबका मूर्छित होना, विद्याधरो का भनी भावापीक प्रस्तुत कला, झिा के नीचे दबाने पर भी नायक प्रद्युम्न