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सत्यभामा के उद्यान का वर्णन करते समय कवि ने कई क्यों एवं फलों के नाम
गिनाये है। वर्णन में कोई सौन्दर्य विशेष नहीं है केवल कवि ने वर्मन परंपरा की
रक्षा मात्र की है:
जाह जुही पाडल कचनारू, वाल सिरि बेतु तिहि साल जउ महका अक कणवीरू, राग चपड़ केवर उग ही कैड टगर मैदास सिंदूर पहिचे महइ सरीक दम्बाणा मम्वा केहि भाव मिवली महमाइ अनंत माम जमीर सदाफल धणे बहुत निरसतह वा डिम्बतने केला दास विजउरे चा नारिंग करूण की पि अपार नीबू पिंड खरी संस बिरणी लवंग गुहारीवाल
नारि केल को बहुफले मेल कइम यो आवले (बही ! विविध वन:
विविध वर्षों में कवि का मन सूब रमा है। सम्जा वर्णन, विवाह बन नगर इवार सोरण शकुन अपशकुन वर्णन आदि देखिए:न वर्मन
बाइ दिसा करका गए, वाट काटिनो कालो ना महुवर दाहिनी अंदु परिहार दक्षिण विस का रिवाल गणमा दीसा जीव अमिषा पट्टा सिम वै सह पंधि
पारधि ममा कहे पति पास न वी पार प्रस्तुत चरित कवि ने परम्परानुसार अनेक वर्णन किए है। नगर, प्रभ्य बार बोरण, रनिवास वर्षन के साथ कवि ने विवाह वर्षन नसशिसवर्णन मज्जा बन मादि अनेक वर्णन लिय-धारका का - देखिय:
बाबर माह इवारिकापुरी, पर जब जो रविकार धरी बारा को सविस्तार कंचप कलम ति दीसह बार हाय बार पनि ध फटिक दीश सिm
बीवन धवलहर अबास मा मन्दिर देवल यास