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जिस प्रकार सिद्धों और नाथ कवियों ने गुरु महिमा, आध्यात्मिक प्रचार , रहस्यवाद और नदियों के विनाश के लिए अपने अपने मतमतान्तरों और धर्म के प्रचार के लिए माध्यात्मिक साहित्य लिखा ठीक उसी प्रकार इन जैन कवियों ने धर्म प्रचार, नैतिक निष्ठा और उपदेश प्रबार की दृष्टि से ही इन क्या का यों या चरित काव्यों की रचना की है। भी हो, इन काव्यों की भूमि में संस्कृत और प्राकृत की परंपरा अवश्य रही है। संस्कृत और प्राकृत की इसी परंपरा को अपश में कवियों में पूरा पूरा निभाया है। अधिकतर इन कामों में मास्याम मूलक, चरित्र वर्णनात्मक और उपदेश प्रधान काव्य ही अधिक है। अपर में इस प्रकार के चरित प्रधान व चरित मंजक कई काम्य मिलते हैं परम चरिउ, रिमे मि बरिर महापुराण भविष्यत्त-कहा, पाव पुराण, वयकुमार बरिउ, जसहर बरिउ, जबूस्वामी वलि, मुदसण परिस, आदि अनेक बरित काव्य उपलब्ध है। अपाशितरकाल में भी इस प्रकार की परितमूलक रचनाएं उपलब्ध हुई है।प्राविकाल में इस प्रकार की अनेक कवियो अभी जैन पंडार में देवी पड़ी है। जिनकी गेध होने पर परित अंशक अनेक कृतियों के उपलब्ध होने की संभावना है।
चरित मा ति काव्य ऊम की इमोतक नहीं है। यह नाम संभवतः इन कवियों ने विषय के आधार पर दिया है। किसी महापुन या तीर्थकर वा विी ग्दात्मण-सम्पन्न रागा का पार्थ चरित वर्णन करने के लिय की इन कवियों में मा नाम दिया है। इन गव्यों की प्रवृत्थियों पर विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि इनमें कथा बत्य की प्रधानता है। नायक के पुषों का वर्णन, उसका आई वरित, उसकेमा साप, उसके बौर्य और वीरता आदि का वर्णन क्ले में कवियों मे विविध प्रभावशाली घटनाओं और क्या पूर्ती की महावा ली है। इन यो वि व सभी पाकि, उनके कर्म सिधान्तों का सिवान है बस्तुका विध प्रकार काव्यों का मूल उदेश्य धर्म प्रचार था, ठीक वैसी ही गुड मिस बनानों की है। इस दृष्टि के जैन वनाएं धर्म प्रचारक रमा पर ही उनमें बस स्थल पर निरा। इन सरित मूलक बाबानों का मोका योग जीवन निमाल की इष्टि जो साहित्य मानव mstem afRT गाय या साहित्य मन प्रकार और भाषा निमाग