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चरित काव्य
जैन विद्वानों और कवियों ने जिस प्रकार संस्कृत साहित्य में विभिन्न काव्यों की सृष्टि की है उसी प्रकार अपने साहित्य की भी बड़ी सेवा की है। अपक्ष में रचित महापुराण, वरित य, स्तोत्र स्तवन की यही परंपरा अपारेत्तर काल में भी सुरक्षित मिलती है। दरित-काव्य उनमें से एक प्रशन प्रकार है। ये काव्य जैनाबायौँ ने जन सेवा, आवकों की प्रार्थना और धर्म प्रचार के लिए लिखे है। किसी आ पुरुष, महापुरुष तीर्थकर या १३ लाका पुरुष आदि के जीवन पर काव्य लिखना जन समाज को उसके आवों से परिचित कराना है अतः परित काव्यों की अपात्र में बहुलता दीर पड़ती है। अपज की ही भाति पुरानी हिन्दी (पुरानी राजस्थानी या प्राचीन गुजराती) में इस प्रकार की चरित्र या चरित संज्ञक रचनाएं अनेक मिलती है जिन पर हम इस अध्याय में प्रकाश डाली। इन कृतियों में किसी प्रसिद्ध पुरुष ऐतिहासिक व्यक्तित्व राजा, संचाधिप या राजमंत्री की प्रेरणा या उनका इने लिखाने में पूरा आग्रह स्पष्ट दिखाई पड़ता है। अतः उन्हीं के लिए इसमें किसी मंगल कामना से या किसी संचाथिप दान वर्णन या किसी अत्याती का मत वर्षन गा किसी महापुल का चरित वर्णन किया गया क्योकि जैन मुनि निष्कान पाचना करते थे। साथ ही अपने आश्रयदाताओं का अतिरंगना से वन करना ठीक नहीं समझते है, परन्तु फिर भी समरा रा. जिन बल्ल पूरि पुराण बन, बड़ राय, प्रादूराम मादि इस प्रकार की अनेक रचनाएं मिलती है जो इस व का अपवाद नहीं कही जा सकती। यड्यपि जैन कवियों ने पौराणिक मामानों
मापार पर व्या संस्कृत काव्यों मापार पर पी लिया है परन्तु उनमें परित मास्यान रखना बसिरमा पन्द्रका कुमार पात परित, मीनदी का परिवरित, आदिनाथ पारित आदि अनेक मच नीकरों और महायों के बीवन पति है। इन ग्रन्थों में कवि ने क्या को माध्यम बनाया
किलो बीकन की मिी उबात मावना मा नैतिक और सदाचार सम्बन्धी किटी उत्कृष्ट बात का जनता प्रचार कर सके। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि