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आमइ मेल्डमा अगि प्रहार,
दरिसिन सोहि विगार
सूली फीटी टू सिंहासन, तिही वह पूरी पदमासन शीलवंत सुदर्शन को श्रृंगारा गया और कवि ने असदृट्टत्तियों पर (काम पर) कील की विजय कराई है।सुदर्शन की विजय का वर्णन देखिए:
महि पट हस्ती श्रृंगार जे पे राजन हाथी जाइ
तेह ऊपरि सद्दरिति चढीउ, जागकि राजा चिठकी गडित
मस्त कि मेवाडंबर हम पेंच शब्द वाजई वाजित्र
पर्वत नाचि नचाबी भरहा मद जाणि सठि हावी
फूल पर परा व्याराइ, अगर कपूरा तिही बहु उमेवार
परि परि गूडी गांधीवारि, बधावई वाकू नरनइ नारि रगड़ी बड़ी निरक्षिई मनवणी, घन घन जा जेनई जननी अन्त में निर्वेद में काव्य समाप्त होता है और स्वयं सुदर्शन क्षेत्र निकाल कर दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं कवि ने अहिंसा कर्मवाद और कील तप की सफल
अभिव्यंजना और मुख्य संवेदना पर काव्यवड़ा किया है:
ठामिठामि मंडप महाना, मेढा सोहि गया
वापाणि कवि सविध समसप
दिवा षि मान मिली नाग मारई मल सठीया रब्बी रंगि महू आनंमा
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धर्म घोष दिदी, सर्व व्रत सामाइक की काम सवारी सिनह
दीवा उत्सव की माहि नविमार रंगि जंग म
कवि में डाल में लोक गीतों की ढालों के आधार पर एक टेक विशेष का