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आदि इसी प्रर के प्रबन्ध है। पुरानी राजस्थानी प्रबन्धसंज्ञक रचनामों की परंपरा बहुत सुरक्षित रही है। वीं शताब्दी में इस प्रकार के विमल प्रबंध (सं० १५६८) माधवानलकाम-कन्वला प्रजन्ध, सदय वत्सवीर प्रबन्ध गादि अन्ध इसी प्रकार के है।
प्रबन्ध रचनाओं के शिल्पके निश्चित तत्व नहीं है। यो मानव कल्याण और जीवन को प्रेरणा तथा आनंद की ओर ले जाने का उद्देश्य तो प्रलोक सतकामा का होना चाहिए पर मोटे रूप में जो प्रमुख नात प्रबन्ध काव्य के शिल्प मैविक्षाई पड़ती है उन बचन इस प्रकार है:(.) प्रबन्ध गदः, अपना पदरा में की हुई सार्थ रचना को कहते है। विक्रम संवत् h ०० से १५०० तक अनेक रचनाएं हमें प्रबंध नाम से मिलती है यथा- कुमारपाल
प्रबन्ध, प्रबंध चिन्तामणि. मोज प्रबन्ध आदि। (a) इन प्रबन्धों में नीर पुज्यों के चरित वर्णन होते है।अत: इन काव्यों में
सधवीर दानवीर दयावीर और धर्मवीर तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों
का चरित्र चित्रण होता है। . (1) उत्साह वर्णन भी इन काव्यों में होता है। (४) प्रबन्ध काम-वरित, पवाड़ी, प्रबन्ध, रासो, छंद, मलोकों आदि अनेक
नामों से बर्षित होते है जिनमें द वैविध्य होता है। (५) प्रबन्ध काय विशेष रस मधान रहना होती है जिसकी रैली भोजपूर्ण या
प्रवाह पूर्ण होती है। (8) प्रबन्ध काव्य का बुटत ज्यात या ऐतिहासिक होता है और वह एक श्रृंखलाबद्ध
रचना होती है। (७) परिवनायक धीरोदात होता है उसमें श्रेष्ठ पुरूषों के सब गुण विद्यमानब होते है। 10 में अनेक बार और काल्पनिक कथाएं भी होती है। (९) प्र काव्यों में विविध वर्णन होते है। (..) उसमें जीवन के प्रति एक संदेश होता है।
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_.. देखिए गुजराती साहित्य ना स्वम्पो-
म०र० मजमूदार पृ०७१।