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अहवा किन्ति रत्यावरुणा करिसह निश्चई मसिसई (राइ) द्वा जसु नासह(४१) (विरह के मुख से वह न तो देखती है न हंसती है परन्तु केवल प्रियतम की प्रत्याश का ध्यान करती है या कितनी रथ्यावर्णन कई वह तो शून्य वर्णन होगा, वह निश्चय ही मरेगा और उसका या नाश को प्राप्त होगा)। गरी द का उदाहरण देखिए:___ चर्च्चरि चाचवाहि अम्लर 'किविराम प्रेस्सहि विविकिवि गायहि वर धवन
रचहि रवन-सविकिवि दहि अक्सय गिणहहिं की विसयि ह जिनकला।
( जिन क जन्मोत्सने कोई अप्सरा मुन्दर चरी बोलती है, कोई राम खेलती है, कोई उत्तम ज्वलपोल गाती है, कोई रत्न के साथी रखती है कोई दही अक्षत लेती है। () ११४ में मोमप्रभ मूरि रवित कुमारपाल प्रतिबोध में भी री का उल्लेख मिलता है
अइ पतु कुयाह वसंत समाजो, संजणिय सयलजण चित्तपमओ
उल्लासिम-सक्स-पवाल-ज पसरत चार चच्चरि च मा (किर एक बार वसंत समय आया वह समस्त शेकों से मन को मुक्त करने (प्रदित) वाला, या यों के पल्लव समूह को प्रतित करनेवाला था जि वेल (लता) समान अदर वर्चरी गीत प्रसारित होते है।) (९) दक्ष राम नाम अांश काव्य री संतक ही देखिए
सम्बजि मे पुषि करिषि तार नारिखमा बन्य बर्मत काल अपानि विहार परिस्लिीहि,
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.- देवि मारपाल प्रतियोग- सोमप्रसूरि . ५४। १- जैन पूर्वर कवियो- प्रस्तावना .