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________________ ५३८ म अराज भणन्त सुन्दरि चव्वरी भणपोहणा ||२३१ ॥ उक्त पद्म की संस्कृत टीका भूषण में प्रकारान्तर से इस प्रकार मिलती है कायुक्त सुवर्ण कुन्डल पाणि स विराजिता पाद नूपुर संगता सुपयोधरद्वय भूषिता atter वलन पन्नगराज पिंगलवर्णिता चर्चरी तरुणीय चेतसि चाकसीति सुसंगता || (५) प्राकृत पिंगल सूत्र में वर्चरी छंद का उदाहरण इस प्रकार दिया हुआ है पाजमा पक्कs हंस-सद- सुसोडणा थोस थोस भणगूग बच्चई मोल्तिदाम मनोहरा वाम-दाहिण वाण धावड तिक्ख चक्ड कडक्स काहि पूरिस-मंह सुंदरि पसिना । । २३२॥ (जिसके पैरों में नूपुर हंस शब्द जैसा सुबोधन फनकार करता है, जिसके थोड़े थोड़े नवीन उभरे हुए स्तनों के ऊपर पनोहर मुक्ताहार नाचता है जिसके दाहिनी बाई और तीक्ष्ण आंख के कटाव बाप की भाति दते है। ऐसी सुन्दरी किस पुरुष के घर की शोभा बढ़ाती है तो तू देव)। (६) महाचारी अपने दोनुशासन के अध्याय (०४६) में रखुमा वर्णक छन्द का एक सूत्र दिया है कि ताजैः वृत्ति-पात्रः तुमीक विमानश्च रावक जैरिति वारिष्टभिश्व यति: । इस प्रकार एक ६ मात्रा, सात बार मात्रा और पक त्रिमात्रा व क २७ मात्रा का रश्यावक है कि जिसमें १वीं और फिर वाढवी और बी मात्रा पर यति जाती है। इसके पश्चा (०, ४७) मैं बच्चरी जैः जेरिति नतु भिरष्टभिश्व यतिश्चेत तदा तदेव रावक बम्बरी जिसमें वीं और रवीं मात्रा पर यति आती है वह रश्यावर्धक परी कहलाती 1 (0) स्वयंभू में (४.१९५ तथा १९६) में मी यावर्णक का उदाहरण मिल जाता है। उदाहरण दोनों का असर देखिए विरह रहक्कई सुइय न जबइ न उस भाव केवल पिमयच्चासइ
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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