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________________ ५२७ इस प्रकार उक्त शिवा बरपा संज्ञक समी रचनाओं में उप छन्द का प्राधान्य है। साथ ही इन रचनाओं के विषयों को देखकर यह कहा जा सकता है कि इसमें बारह मासों से लेकर आध्यात्मिक काव्य, चरित, कथा, प्रबन्ध, प्रशस्तिमान तक का विस्तार मिलता है।था की ये विविध परंपराएं इन रचनाओं के द्वारा स्पष्ट होती है। कवि ने उपद छन्द में वरित, बारहमासा क्या प्रशस्ति दार्शनिक काव्यों तशा प्रबन्ध काव्यों को भी ज्या परंपरा में सूत्र-मध किया है वस्तुत: चरपई संज्ञक रचनाओं के विषय अलग अलग होते हुए भी मद की .ष्टि से समी रचनाएं हन्द प्रधान है। अतः काव्यमों की दष्टि से इन्हें प्रद प्रधान रचनाओं में ही स्थान दिया गया है। - -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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