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इस प्रकार उक्त शिवा बरपा संज्ञक समी रचनाओं में उप छन्द का प्राधान्य है। साथ ही इन रचनाओं के विषयों को देखकर यह कहा जा सकता है कि इसमें बारह मासों से लेकर आध्यात्मिक काव्य, चरित, कथा, प्रबन्ध, प्रशस्तिमान तक का विस्तार मिलता है।था की ये विविध परंपराएं इन रचनाओं के द्वारा स्पष्ट होती है। कवि ने उपद छन्द में वरित, बारहमासा क्या प्रशस्ति दार्शनिक काव्यों तशा प्रबन्ध काव्यों को भी ज्या परंपरा में सूत्र-मध किया है वस्तुत: चरपई संज्ञक रचनाओं के विषय अलग अलग होते हुए भी मद की .ष्टि से समी रचनाएं हन्द प्रधान है। अतः काव्यमों की दष्टि से इन्हें प्रद प्रधान रचनाओं में ही स्थान
दिया गया है।
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