________________
२८
१४वीं १५वीं शताब्दी का गद्य और गद्यकार तथा विभिन्न परिशिष्टों के अन्तर्गत प्रन्थ का समापन किया है।
विवेचन :
(१) वास्त्री जी ने जैन जैनेशर, प्रसिद्ध लगभग सभी रचनाओं पर विवरणात्मक or प्रकाश डाला है। तथा आदिकालीन लगभग इन सभी कृतियों को जूनी, गुजराती का सिद्ध किया है, जो असंगत है। यह कृति किसी भी शोध स्नातक के लिए निर्देशन तो कर सकती है परन्तु इससे उसे इन कृतियों को विशुद्ध गुजराती मानने का प्रम भी हो सकता है।
(१) वास्त्री जी ने भंडारों में प्राप्त तत्कालीन प्रमुख कृतियों के प्रमुख उद्धरण दे देकर उसके पाठ की सम्पन्नता की ओर इंगित मात्र तो अवश्य किया है परन्तु वह अपूर्ण है। उन्होंने रचनाओं की ऐतिहासिकता सिद्ध करने का प्रयास अधिक किया है। ही कुछ आलोचनाएं अवश्य वैज्ञानिक कही जासकती है। इन कृतियों का साहित्यिक विश्लेषण और साहित्यिक विशिष्टताओं पर शास्त्री जी ने प्रकाश बिल्कुल नहीं डाला है। अतः कृति विवरणात्मक अधिक हो गई है। कृति के परिशिष्ट
उपयोगी
1
(1) शास्त्री जी ने पूरी कृति में जूनी मराठी मावा की स्वतंत्र सत्या स्थापित करने का प्रयास किया है और गौर्जर अप की महत्ता पर प्रकाश डाला है। के०का शास्त्रीने १९४२ ही विक्रम ० १५वीं तक के प्रमुख
कवियों पर प्रकार डाला है।
(४) जहा तक भाषा का प्रश्न है, डेमचन्द्र की पत्र के सम्बन्ध में विद्वानों में बड़ा गरायेद है। डा० प्रियर्सन के ग ने हेमचन्द्र के मत को नागर अपने बताया,
डा० मोढारकर अप का क्रम ही off शताब्दी में ब्रज भाषा प्रदेश में हुआ मानते है। डा० ०पी०डीनेन्द्र की अप को शौरसेनी अपभ्रंश माना है
R
1- George Grierson on the Modern Indo Aryan Vernaculars P63
२० देखि माया कामिक प्रवचन द्वारा की नि० २०१
२- पुरानी राजस्थानी- अनुवक डा मानवरहि ०५६- नागरी प्रचारिणी सभा - काशी