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साहित्यिक विवेचन प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है। विवेचन:- इसना होते हुए भी प्रस्तुत रचना के पाठ वैज्ञानिक रूप से सम्पादित नहीं हो सके । असः कई स्थानों में अर्थ समझना कष्ट साध्य हो जाता है। अतः इसका वैज्ञानिक संस्करण और पाठ सम्पादन होना परम आवश्यक है। यौं रचना पर्याप्त महत्व की है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका अपना योगदान स्पष्ट है।
(२) जैन गुर्जर कवियों भाग १,२,३:
प्रस्तुत पुस्तक के प्रस्तोता है, श्री मोहनलाल वलीचन्द देसाई देसाई जी ने इसको तीन भागों में प्रकाशित किया है। तीसरे भाग के दो सन्हों में विभक्त कर दिया है। इस तरह देसाईजी ने इस ग्रन्थ को बार जिल्दों में प्रकाशित किया है। समूह रूप में ये रचनाएं सम्बत ११०० से उन्नीसवीं शताब्दी तक की विभिन्न जैन अजैन थन्डारों में मिलने वाली रचनाओं की वैज्ञानिक नामावली है जिसमें आदिकाल से १९वीं शताब्दी तक की इस्तलिखित रचनाओं का सुन्दर संकलन है। गुजरात और राजस्थान के लगभग समस्त भडारों की कृतियों का सहज संक्षिप्त संकलन प्रस्तुत कर देसाई जी ने शोध के क्षेत्र में बड़ी सहायता की है। देसाई जी ने प्रत्येककृति का प्राप्ति स्थान समय विवरण मादि वैज्ञानिक ढंग से देकर उसके पास के आदि अन्य कर स्थिति को और अधिक सुलफा दिया है। हिन्दी जैन साहित्य
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के किसी मीकाल की प्राचीन जैन हस्तवित प्रतियों की शोध करते समय इन तीनों बंडों की उपेक्षा करना एकदम असम्भव है। प्रस्तुत कृति के तीनों सन्हों में देसाई जी ने समसामायिक प्रतियों का परिवद्र्धनकर रचनाओं को और अधिक सारपूर्ण जमा दिया है। वस्तुतः ये तीनों स देसाई जी के जीवन की साधना के तीन महत्वपूर्ण सोपान है। यह तीन जैन स्वेताम्बर का बाम्बे से प्रकाशित हुए हैं।
३- आपना कवियों:
गुजराती भाषा में किसी इईवह कृषि आदिकालीन जैन अजैम रचनाओं का antareas after देती है। इसके कैशवराम काशीराम वाल्मी, रचना ara aftक्यूलर डोसावटी अहमदाबाद से प्रकाशित हुई है।
शास्त्री ने नरसिंग के पहले के प्राचीन मरा के साहित्य गौर्जर के प्राचीन वाडीवान, सावार्य द्रवात्विक अप, रासयुग