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के सुन्दर चित्र प्रस्तुत किए है। पद्मावती की शक्ति से कवि सभी को परिचित कराना चाहता है। वह खंडक दन्ड से दुष्टों का दमन करने वाली है तथा धरती पर नारियों में सबसे उत्तम, असाधारण एवं पूजनीय नारी है। वर्णन क्रम का सौन्दर्य देखिए:
कुन्डल मंडल मंडिय गंड, अरि सन् य वन् परान्ड
धम धन चोरिल निम्मल हार, परमावर नंदउ जगिटार
नेर कुणि विहारि दिति चक्क, गुग दन्ड इंडिय दिउ वर वनक मणिकंकण विचइय पट्ट पउमा होहि भवियह अंतुव
tre सुहलिय सो विषरसि, अरिकुल कोमल दीड करसि जय घरविंदह उत्तम रमणि, पमउ पवि तह मयगल गमवि पास वर पहिरण पाणि, तंग चूड कर विसहर वर जाण पउम पत्त समयन्न सरीर, परमपवि मा गई अवहीरि कति नर्मति सुरापुर रमणि, मणि किरीकरि रंजिय ऋषि कि पणियति नरमत्व वराम, भाराहहि सुरवर हुह पाय (५-९)
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पदम पउम कहिनी नम अंठ, सल काम पूर जम म मोहे चमयन्ति, जब अपराजय विजयनयंति बडी पर बोल डाल सद्र इकञ्चि विविपयार इस प्रकार पूरा काव्य पद्मावती के यह वर्णन में लिखा गया है। क्षेत्रपाल चक्रेसरी देवी तथा विकादेवी की मीति वीर्यकों के साथ जैन समाज में पद्मावती देवी की भी पूजा होती है। तथा जैन तीर्थकरों के साथ पद्मावती देवी का चित्र भी मिलता है। बड़मावती वाणी का प्रतिस है मयः काव्य प्रारम्भ करते समय भी कवियों मे इसकी अभ्यर्थना की है। में कवि मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी पद्मा की