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विविध विद्याओं के नामों में भी कवि ने परिगणन शैली का ही प्रयोग
किया है:
गगन गामिनी बहुरुपी पति पोरवणी व करेगी हिम लोकमी सह देह आमिर्थम मणिउ लयमेड सम्वसिदूध बिज्जावाणी पायाल गरिवी अ मोडणी चिंतामणि गुटिका सिधि लब पति निहाणु जमीकes मामिक देइ रथम वरक्षिणी । सुमदर सिमी भुवथगामिनी कामी
रण अमेथमेव र देव
अवर चन्न लई तहि पली । तिमिर दिठि विषजात मिली अमी बंध धारावंधणी सब्बो सही ताहि वहि मणी
afo विरजड जिणदत्व लिलारू सोलह विज्बा लइय विचार
कवि ने समाजिक वर्णनों में बहु विवाह, आभूषण पहनने की प्रथा
वैश्या, तथा जुआ वर्णन आदि पर भी प्रकाश डाला है। सांसारिकता में घुलाने के लिए माता पिता अपने पुत्रों को जुआरियों की संगति में भी मेज देना पसन्त करते थे। वर्णन के इन्हीं सूत्रों द्वारा पुष्ट स्था तत्व की रस्ता देषि:
(१) या गोरया वर्तमः
as सेठि मंड परिवारोई कारग
मटभट जे म नहि गह काम बहु बैठि इलाब बाग बार बार वैसा पर जाहिम खेलत न बधाइ काट अंतरात चरs
बोरी करत न आल कर
जिनके दन्यमय विन्दु पीठी
किवा बाजूनी मुठि
गंग व भारि जि सही । तिथि तु बेठिया बहुकडी
अहो मी इन्द्र पर
कि मर मर
जो विवि मनु ढावे । निध्य ठाव दामुमो पावे हि बोलतो परिमारी बोल
वारित
ब ब रम गयर नर नारि तुम पाछे सकहु सवारि (६६३७०)