________________
सासू इती जीमत बैठी, त्रिम लियंती सुभद्रा दीठी विकलप बधिया पन्नड माहिं बड़ी रहिसिक पीहरि गहे
सुभद्रा ए मा मापति मार नीठक वयण कि सागर जाए कवाषि का जि तुम्ड कीन्ह रोमो अहह कार चढाकिड दोसो बबा देव गुणा नवकारा नीर गलती त्रिनि ने वारा महाइ महसइ कह न मार, पाछिम लेवि देहरि जाए अम्ति दीठा तुम्हारउ बरिउ धमियउ मोनउ फूकह हरित
तर महमा निर्दड अप्पा ताकिम पडविधि गइ (९-१९) साकित मुहावरे व अद सौन्टब दृष्टव्य है।
कवि मागे अपनी सरस शैली में सुभद्रा को दिए गए कष्टों की चित्र शींचता है। जिससे यह क्या प्रवाह गति आती है। कमि विविध अन्तर्वधाओं का प्रयोग करता नगर के प्रतीली द्वार का उद्घाटन और बच्चे सूत के धागों से कुप में चलनी में पानी निकाल लाती है। कवि की पापा की सरसता तथा प्रासादिकता स्पष्ट है:
सुभद भई बी जालो एक्वार जा उपर आलो प्रा निकली बम हर रोतो नवरी वामियम उठा पाती
मविपापति पाठी मी बारा र माविक मका बहाब रेमिति राव भाला रोबकि पा मारे पालि म विहाको विहि बोकि मिजोय प्राय सत्यपि माह पनि कारों पाबा गुपक्षिय बात विकार
बोये विवि माह नवरी माह होन कराड बलिपीक सरिया बार भाव नहि भवनि पून
शादियां का नाही पाइको होमई को इहि मेरी साकार पाहु विवाह नगरह मारे शिवि शारिवाज गरल पा पारित साठी करत