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________________ २५ निश्चित रूप से सं० १००० के लगभग हुई इस वक्ष्य की पुष्टि में डा० धीरेन्द्र वर्मा का यह मत यही दूधख किया जा सकता है। "किसी भाषा के साहित्य में व्यवड़त होने के योग्य बनने में कुछ समय लगता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए ह कहना अनुचित न होगा कि मध्यकालीन भारतीय आर्य-मावाओं के अन्तिम रूप अप से तृतीय काल की आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का आविर्भाव दसवीं शताब्दी ईसवी के लगभग हुआ होगा। भारत की राजनीतिक उथल पुथल में इसी समय एक स्मरणीय घटना हुई थी । १००० ई० के लगभग ही महमूद गजनवी ने भारत पर प्रथम आक्रमण किया था। इन आधुनिक भारतीय भाषाओं में हमारी हिन्दी भाषा भी सम्मिलित है, अतः उसका जन्मकाल भी दसवीं शताब्दी ईसवी के लगभग मानना होगा" । अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दी भाषा की सीमाएं ११वीं शताब्दी से ही प्रारम्भ हो जाती है। यो अर्थमंत्र के उत्तर स्वरूप में शौरसेनी अपभ्रंत्र तथा नागर अयमेव के पुरानी हिन्दी के अन्तर्गत आने वाली देवी ferrera विशेष रूप से प्राचीन राजस्थानी, ब्रज, अवधी और जूनी गुजराती आदि को जन्म देने में बड़ा योग दिया है। अत: ऐतिहासिक दृष्टि से इन देवी मावाओं को पुरानी हिन्दी में स्थान देना समीचीन होगा। दूसरे शब्दों में यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि पुरानी हिन्दी की इन वादिकालीन रचनाओं में प्राचीन राजस्थानी पूनी गुजराती, ब्रज मालवी आदि विभाषाओं की रचनाओं का विश्लेन किया जाना चाहिए और इस विकास की सभी रक्तावों को हिन्दी र्गत किया जाना अत्यनिवार्य है के हमारा उदेश्य यह केवल हिन्दी के विकास से हैव से किस प्रकार हिन्दी का सूत्रपात हुआ, यही हमें देखना है। मेद से तो नागर या शौरसेनी अ बने मकानों में रिट हुई किन्तु काव्य अथवा रीति वेद से वह दो गायों में विभाजित हुई पहली का नाम डिंगल है और दूसरी का पिगंल । डिंगल राजस्थान की साहित्यिक भावा का नाम पड़ा, और पिंगल प्रदेश की सारिक माया का नाम। वहीं से हमारी हिन्दी की उत्पत्ति होती है।हिन्दी का आलोचनात्मक इतिहास- २०४३-४४। १- हिन्दी भाषा का इतिहास- डा० धीरेन्द्र वर्मा पृ० ११
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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