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________________ २४ है। अतः हिन्दी की देरी पाकाओं में प्राचीन राजस्थानी, जूनी गुजराती, मालवी तथा ब्रज, अवधी आदि को स्थान दिया है और इसका ऐतिहासिक दृष्टि मे महत्व स्पष्ट है कि अपग ग्यों ही साहित्यिक बंधनों में कस गई, पुरानी हिन्दी इन विभिन्न देशी भाषाओं के रूप में उझुक हुई। इस दृष्टि से सं० १००० से ही हिन्दी काप्रारम्भ मानना चाहिए। यो विभिन्न विद्वान हिन्दी के उदभव के सम्बन्ध में वीं वीं शताब्दी ही बतलाते है। परन्तु इन कृतियों और देशी भाषा की इन रचनाओं के आधार पर यह सरलता से कहा जा सकता है।कि हिन्दी की उत्पत्ति 1- (अ) सुनीति कुमार चटर्जी- यह मालूम नहीं पड़ता कि यह हिन्दी ठीक ठीक कौन सी बोलीधी पर बाब सम्भबकि यह ब्रजभाषा या पश्चकालीन हिन्दुस्तानी के सदश्य में होकर बारहवीं सदी में प्रचलित सर्वसाधारणकी बाहित्यिक अपरही रही हो, क्योंकि वीं वीं सदी ईसवीं तक हमें हिन्दी या न्दुिस्तानी के दर्षन नहीं होते। भारतीय आर्यपाषा और हिन्दी-प्रथम संस्करण, पृ.१०TY. १७८-१001 (क) श्री राहुल 'साल्यान- हम अब पुराने कवियों की भाषा को हिन्दी कहो है, तो इस पर मराठी, उड़िया,मंगला, आगामी गोरखा, पंजाबी, गुजराती, भाषा विभाषियों को आपत्ति हो सकती है। उनमें भी उसे अपना कहने का उतना ही अधिकार है जितना हिन्दी भाषा भाषियों को। बस्तर में सारी आधनिक भाषाएं बारहवीं तेरहवीं शादी में अपना अलग होती बीस पड़ी। हिन्दी काव्य पारा. - (किताब महल) । (8) ना.जारी प्रसाद दिववेदी-हेमचन्द्राचार्य नेवी प्रकार की अपयशपायानों की बाकी है.दुसरी बेबी की भाषाको हेमचन्द्र नेमाम्ब कहा है।वस्ततः बड़ी पाका मार्ग बनकर बामिक देशी भाषायों के रूप में विनिती हिन्दी साहित्य .. (ब) श्रीरमा हरी-पुरानी अपना और प्रा मित्री और पिकी रानी हिन्दी साविककी मावों में बारम्बी अपनों की प्रधानबासी और फिर बा पुरानी हिन्दी में परिमित कोही पुरानी दी, मा eart, totr... ..। (1) ET. उदय नाराबविवारी-इस प्रकार चन्द्रहवीं बटी बक भारतीय आर्य भाषा आधुनिक काळ पदार्पण कर की पी और बाबा हेमचन्द्र के पश्चात रहवीं तो प्रारम्भबानिक भारतीय मार्य भाषाओं के अध्यक्ष्य के सपीसीपूर्वमकाकाल कान्तिकाल था, जिसमें भारतीय आर्व पापापीरे रेवकी स्थिति को छोड़कर आधुनिक काल की विमानसोही बाही थी। पीपा का रहसव और विकास-भारती महार,इलाहाबाद-१९५६ () डाः राप मार वर्मा- अपच के जड़ हो जाने की अवस्था का ठीक समय नितिनही किया जासका अनुमानतः यह समय .....मारका है। अनेक स्थानोबोके जाने वाले पांच अनेक प्रकार की पापायों में परिवार होमप्रागदार बाबड़ निधीबागका बाबासागरबा औरती अपारदी बरामी.राजस्थानी और बाबीको विका . मागी रोगका. मिहारी.बाताबी.और मानी पूवी दोबाराती बिमा।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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