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इस प्रकार उक्त स्वस्मों से माषा की स्थिति पर विचार क्यिा जा सकता है और राजस्थानी कतिगों को हिन्दी के प्राचीन स्वरूपों को पूर्णतया सुरक्षित रखने का श्रेय प्रदान किया जासकता है। उक्त विश्लेषण में हमने इस कृति के माध्यम से विषय पर किंचित प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य की राजस्थान में उपलब्ध होने वाली इन कसियों का मूल्याकन होने पर इस प्रकार मा बधा साहित्य के सम्बन्ध में अनेक नातव्य हमारे सामने स्पष्ट हो सका। इनकी पर्याप्त शोध शावश्यक है। बपी वादिकाल की मुख्य प्रवृत्तियों का सम्यक विश्लेषण सम्भव है।
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