SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 511
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७५ वर्णन के अप में इस बारहमासा की कल्पना कर सकते हैं। अपज में भी बारहमासा की एक बहुत ही प्राचीन रचना उपल हुई है। जिसका उल्लेख श्री अगरबन्द नाहटा ने श्री डा. नामवर सिंह के कथन का परिहार करते हुए किया था अपर की यह रचना प्रकाशित भी हो चुकी है।' डा. नामवर सिंह का विचार है कि बारहमासा हिन्दी की ही अपनी विशेषता है परन्तु ऐसी बात नहीं है। अपच की वीं साबुदी की एक महत्वपूर्ण रचना मिल चुकी है जिसमें बारहमाया का वर्णन हैली अगरबन्द नाहटा लिखते हैं कि वास्तव में इस बना का नाम बारमा है जो कि रचना के अन्त में लिझा मिलता है और कति की पहली पक्ति में भी जिसका निर्देश हैपिंडित लालन पाधी ने पी धर्मसूरि स्तुति के आगे बैक्ट में (बारह नाव द्वादर मास अप शब्द द्वारा स्पष्ट कर दिया है। अभी तक प्राप्त बारामारों में अपश की यह रचना सबसे प्राचीन है-- और इससे बारहमासा ज्ञक भाषा काव्यों की परंपरा ८०० वर्ष पुरानी सिद्ध हो जाती है। अतः पी नापनरसिंह की इस बात का सरलता से परिहार उक्त उद्धरण से हो जाता है। स्वयं श्री नाहटाजी के संग्रह 100 से अधिक जैन कवियों के बारहमास है जिनमें तीन बौथाई बारहमासे नैमिना और राजमती के स्थावर पर लिख गए है। यहीं बैन कवियों ने बारहमासे वीं वादी प्रारम्भ होकर ९वीं सताब्दी के उबराई कि जाते है। नेमिनाथ पद मा अम्पादिका इन बारहमासी है एक ऐसा ही बारामा यही एक और महत्वपूर्ण नाज का स्पष्टीकरण आवस्यक दिखाई पड़ता। और बह यह कि डा. नामवर सिंह ने इस नेमिनाथ परपर रबमा को अपांच की रखना कहा है और इसका रक्ला .. लिया है।जो दोनों ही पाय ठीक १० देखिए किसी भीलवक, परकी बगरचंद नाम्टा का-बारह-मामा की प्राचीन परंपराया ५ देखिए हिन्दी विकास अपरागोग-श्री डा. नामवर सिंह पु. ९ -हिन्दी शीम श्री भाण्टाका लेखा 1-बही...॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy