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________________ २२ अबश्य है। लहंदा के लिए एक कैकय अपाश की कल्पना की जा सकती है। यह प्राच अपव से मिलती जुलती रही होगी। पंजाबी का सम्बन्ध भी कैकय अपश से ही माना जाता है किन्तु बाद का इस पर औरसेनी का प्रभाव बहुत पड़ा है। पहाड़ी भाषाओं के लिए बस अपक्ष की कल्पना की गई है। किन्तु बाब को ये राजस्थानी से बहुत प्रभावित हो गई। इस प्रकार इन उपविभाषाओं और अमाज के उत्तरकालीन स्वख्यों से हिन्दी की प्रवीन और अवाचीन सीमाएं निर्धारित की जाती है। जहां तक मध्यदेश की सीमाओं का प्रश्न है, दूसरे स में वे हिन्दी की ही सीमाएं है। भाषा सत्य की दृष्टि से डा. प्रियर्सन और सुनी तिमार बटी ने भी आधुनिक आर्य भाषाओं के वर्गीकरण प्रस्तुत किए है। डा. प्रियसन ने पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिन्दी के वर्गत हिन्दी का विभाजन किया है और पंजारी गुजराती,नीली,मानदेशी, राजस्थानी और पश्चिमी हिन्दी को एक वर्ग में रखा है। इसी बरा बटी महोदय ने भी गुजराती को प्रवीमा अन्तर्गत, और मध्यदेशीय के अन्तर्गत राजस्थानी, परिवमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, विद्यारी और पहाड़ी पापों को स्थान दिया है। वस्तुतः प्रादेशिक विपाकाओं और हिन्दी की बोलियों को परे रखकर हिन्दी भाषा की बीमाएं निधारित की गायें, भी हिन्दी साहित्यिक इन्टि अधिक मगध हो सकती है। हावीरेन्द्र वर्मा ने मध्यदेश की सीमानों में बनी गुजराती को नहीं लिया है परन्तु गुजराब पर राजस्थान का अंग रहा और ली बाबी पूर्व गुजरात और राजस्थान में कही भाषा मोती बापी सी। माय की भाभी राजस्थान और गुजरात में कोको बन्द एक ही प्रकार है। अब इस इन्टि हिन्दी की बीमा निर्धारित की गाय को दी साहित्य के आदिकाल का शासिनि पाना मागेचा बना हिन्दी भाषा की सीमाएं निधारित करने लिए अध्यक्ष प्राचीन जनपदों की विभाषाओं का समावेश विहिबीबा तिकी गाय
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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