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भाषा के लिए किया जासकता है परन्तु जहा तक हिन्दी की भौगोलिक सीमाओं का प्रश्न है, आजकल यह भाषा प्रमुखतः मध्यदेश में ही अधिकतर प्रयुक्त होती है। मोटे रुप में न्दिी की भौगोलिक सीमाएं इस प्रकार है. उत्तर में विमला नेपाल और पहाड़ी प्रवेश, दक्षित में रायपुर, पूर्व में भागलपुर और पश्चिम में जैसलमेर को लिया जाता है। इस पूरे भू भाग में प्रमुख भाषा हिन्दी ही है। इन विपिन्न प्रदेशों में अनेक विभाषाएं भी है। ये विभाकर हिन्दी की उपभामापं है। हिन्दी भाषी करोड़ों की म संख्या में है। वास्तव में हिन्दी का परिसर बड़ा विशाल है इसके पास भनेक बोलियां और हिन्दी की उपभाषाएं जिनसे इसके साहित्य ने पर्याप्त सम्पन्नता प्राप्त की है। हिन्दी शब्द का प्रयोग जनतामें इसी भाषा के अर्थ में किया जाता है। किन्तु साथ ही इस पूमि माग की - ग्रामीण बोलियों- जैसे भाखाड़ी ब्रज, छत्तीसगढ़ी, मैथिली आदि को तथा प्राचीन हिंगला दबी, ब्रज, अवधी तथा मैथिली आदि साहित्यिक पायाओं को भी हिन्दी माका केही अन्तर्गत माना जाता है।
डा. धीरेन्द्र वर्मा ने हिन्दी भाषा की इन मौगोलिक सीमाओं और हिन्दी की उपालियों का अत्यन्त वैज्ञानिक परिचय दिया है। उनोंने हिन्दी की प्रामीण गोलिया, उई हिन्दुस्तानी तथा अन्य विभागानों बड़ी बोली, बागा, ब्रजभाषा, कन्नौजी, दिली, अवधी, बती, छत्तीसगढ़, भोजपुरी, पिती मगही राजस्थानी, मारवाड़ी वपुरी, मेवाती, मालवी पहाड़ी विभाषामोग हिन्दी मे शनिष्ट सम्पर्क किया।
वस्तुतः इन बर्वमान भाषाओं की उत्पत्ति के मूल में अपज माना है। ग. धीरेन्द्र वर्मा ने औरसेनी ब ल्दिी , राजस्थानी, गुजराती बीर पहाड़ी पापा का सच बताया है। इनमें से गुजराती राजस्थानी तथा पहाड़ी भाषाओं का पन्य विषया औरनी नागर अपच कम। किारी, बंगला, माधानी, और रमिया का सम्बन्ध मागथ अपच है। पूर्वी हिन्दी का अधमागधी अपका पराग का पारामी अपने सम्बन्ध है। अब बसमान पश्चिमोत्तरी पाषाओं का पू रा गया। भारत के इस विमाम रिमा गई माहिरिकामहीं मिला निधी शिम यारो को अमर का बारा