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कथादि और कला कथा परंपरा(Surules) भी इस कृति में पूर्णतया सुरक्षित रही है। क्या परंपरा में जिस प्रकार नारी निरास फागु एक पौलिक मोड़ है ठीकउसी प्रकार यह कृति नेमि काव्यों की आदिकालीन परंपरा को मध्यकाल तक ले जाने वाली है। पुरंगाविध नेमि फाग का उदेश्य जन साधारण में धर्म के प्रति आस्था जगाना है। यद्यपि कृति शत रस पूर्ण है परन्तु फिर भी फागु काव्य के लाक्षणिक तत्वों का मन निवड कर कवि ने कृषि की भागुमयमा सार्थक की है।
इस काय की सूचना सर्व प्रथम श्री मोहनलाल देसाई के ग्रन्थ में उपलब्ध हुई जिसमें उन्होंने इसकी प्रति पाटण मंडार में बताई । पर वही यह प्रति नहीं है। बड़ौदा के जैन ज्ञान मंदिर में से प्रति उपलब्ध है। कृति के अंत में षिका नदेवगामि का उल्लेख मिलता है।
पुरंगाभिध नेमि फाए कुल ८४ कड़ियों में लिखा गया है। इस काव्य की रचना भी अद्यावधि उपलब्ध फागों से भिन्न अपने ही प्रकार की है। कवि ने प्राकृत काव्य या काव्य शीर्षक के अन्तर्गत प्राचीन राजस्थानी या गुजराती के भाईलविक्रीडित हैद में बबैन किया है। काय आवश्यक प्राय का दहा दही है, और कवि ने इस हा को का नाम दिया है। पूण और काम का अन्योन्याश्रय संबंध स्पष्ट होगा। कवि ने 8 दियोजना रखी।
कवि विभिन्न काव्यात्मक स्थलों विलय से उसकी काव्यमय प्रौड़ना का परिचय मिलता है। ना की मामा म हिन्दी दान अनुप्रासात्मक हैप्रस्तुत गजमाव किलोग हमारा श्री मावि देव प्रभु की चना की और लिीि सरस्वती की बंदना बड़े भरस
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