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सरंगा मिध नेमि फाग। (धनदेवगाणि)-सं० १५०२
नेमिनाथ के जीवन पर लिखा ५वीं शताब्दी की अन्तिम फागु काव्य सुरंगा भिध नेमिफाग है जिसके कती धनदेवगणि है और रचनाकाल सं० १५०२।पूरा काव्य नेमिनाथ के जीवन की एक बात काकी प्रस्तुत करने वाला प्रबंध काव्य है। जिसमें कवि ने संस्कृत, प्राक्त और गुजरावी या राजस्थानी आदि भाषाको में लिया है। कवि ने जन मा को प्राकृत काव्य कहा है जिसकी मात्रा बड़ी स्पृहणीय तथा प्रासादिक है। १५वीं शताब्दी में फागु काव्य की रचना जैली, विकास, बस्तु तथा फाJ तत्वों पर प्रकाश डालने वाला यह अंतिम काव्य है। इस कार्य की शैली से परवर्तीकाल में फाय के विकास और काय मशक कृतियों की प्रौदता का विशलेषण असमानत: 'किया जा सकता है। कवि की बेली स्पृहणीय व समामबाल है। अब बबन अत्यन्त कोमल व स्पयुक्त है। कवि ने प्रारंभ मंगलाचरण संस्कृत तथा प्राकृत काव्य की अन्तर्गत किया है।
गेयता प्रस्तुत रमा का प्रधान गुण है। कवि ने रासक, अढउ, गाईल विक्रीडित, काग आदिदों में काव्य लिया है। मेमिनाथ की क्या वस्तु वही प्राचीन है जिसमें कवि ने कोई मौलिक घटना का नहीं किग पर वन
ली, भाका और कानु माय लावों की इम्टि में प्रस्तुब रमा की महत्वपूर्ण है। एक और बाजी मा ध्यान देने मोमीर बह किम कृषि चन्द्रावी स्वादी और पनी असावी की गाडियों की बीच की एक बीमा रेषा गग कही है। मासिकालीन कृषि होने है इसका कारण और भी बढ़ जाता है। मामले सामों वाक्यों और बों के भी प्रयोग तत्समता की और पापा का समाधानमा मालिनी सामों को इष्टि में रख इस कृति का मल्वाल किया बा |
-प्राचीन काय
हा डा. बाडेवरा-पु.10-01