________________
४५४
बसंत की जला कीड़ा
मोडी नादर चीर सुंदर क्सी, टीसी कसी काबली आजी लोचल काले सिरिमरी, सीमत सिरनी लेई साथिई नैमिस्बर सबे मोविंद नी सुंदरी बाढी र गिरिनारि ईगरि गई सिंगारिणी लिया
बर्मत देतपि साथिई देवर, देवरमणी सम गोरी रे पातली गिरिनार गिरि अबावनि चंदन बावनी गोरी रे अनर्ग जंगम नगरा बहुपरि परिषवा मनावन हारी रे, ललाट घटित न पीपति कुन कुमर रमाउड नारी रे
जगमग जगमग माल झवा
भोला कामा नीरिक रिभकिमि रिममिमि और मकर सरभि नलिक परी सोवन सिंगी
मेखव सुंदरि सकल पुरंगी, मीचई नेमि परीरित विवाह वर्मन द्वतीय ड में ही प्रारंभ हो जाता है जिन कवि के अनेक काव्यात्मक स्थत वस्नीय है। कवि रसमडी का परिचय ही या देवा :
मादी गा कि वन मावि मोरी पुजामती बारी बाबमापी रखती साबीती बरी भाषी नैमि-विवार-
बारी या मुलीपीला मंसिरि आन हाली मोनिवि रागीभवी विविध पागल भी अपनी ही छटा रखता है।
पहा ] परिमोसी परिवारीज सिरिया रा-शिव-पटिसिरि