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________________ ४४५ कवि ने श्रृंगार के सारे उपादान प्रस्तुत किए है। अबलाओं का बल बाचकर कामदेव चला। साथ में उसका मित्र वर्तत भी था। अनेक प्रयास किए गए पर सब निष्फल । निर्वाण रस में डूबे हुए चरित नायक श्री देवरत्न हरि का कुछ भी नहीं बिड़ा । पुनि बिजयी हुए। जितेन्द्रिय को हराना काम के लिए असंभव था। मुनि की विजयपर अनेक उत्सव हुए। गान हुए पाटण में उनका यश सर्वत्र का गया अनेक संघ जुड़ जुड़ कर महोत्सव में शामिल होने अनेक दिशाओं से आये वर्णन की प्रासादिकता उल्लेखनीय है: रचिति अबलाबल सारी, रीसर वाला वीर रे मित्र वसंत प्रमुख निज परिकरि परिकरिउ यति धीररे आवि मुनिवर पासह तेजवि जगतबहर उन संताप रे सील व सु देखी अतिषण चमगुण जगण चापरे घणगुण आगम चीप ध्यान ला कलम, सीलिंग रथ बक्ने नायक जय करने कहि तिहा मुनि राउ, बहरी टाला ठाउ बाम बाटोपि ए, मैलाई कोपि प क गई अभिमानि कति मानि बेनवि भाजप, गुणवर बाब ए बिंग इति भवदि, # तिम नाउडर, मिति दीर मही लिया जयकार डाउन वर्ष अवार सविन छाव र भावि माज र मनि विचार आप पच्छड बार प जति समर प पाटन मोहि पडोसन नवनव करई अनेक दिति दिति संपते अन भावई चरम विवेक गाई तिही नारीय वाकर करि निमार सावी वत्सल संघपजे जई हर्म अवार १- नहीं।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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