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________________ ××× सर्वत्र छा गया। दीक्षित मुनिवर अन् ब्रह्मचर्य का पालन कर अध्ययन और मनन करने लगे। ऐसे समय में काम की स्त्री रति को ईक्या होना स्वाभाविक ही था। उसने कामदेव को दुध कर उपाड़ने का प्रयत्न किया। वर्णन में एक अपूर्व सरलता और मधुरता है उसकी वाणी से उत्तेजित होकर काम अपने मित्र वसंत को साथ लेकर मुनि का मान मंजन करके पहुंचते है: तिन समइ रति प्रियपति बोली बोलीगल, महीवली गई मुनि बीसीयका तुम मवि मानद आप मनि मयण महमडठर तत्क्षणि मित्र वसंत कारित, कोमल बने ते नि वारित क गहि अपार • कणयर केतकनs बीजरी, पाडल कैंसर करनी मठरी तारणी गाईवार • पाटल मकरंद केसर आदि सुगंधित दव्यों और सुन्दर नर्तकियों से मुनि को पथच्युत करने का प्रयास किया जाने लगा। ऐसे समय में कवि का वसंत श्री का वर्णन अत्यन्त संभार से किया है। प्रकृति के ऐसे सरस सरल और कोमल था रागात्मक चित्र बहुत कम कवियों ने बचे है। प्रकृति वर्मन की आलंकारिकता मी इष्टव्य है: मरि सहकार लडकई टडकई कोइल बंद पारवि पाल महिमा गहि महिमा मुद चंदन नारंग कदलीय ममलीय र वानंद एमइ मम मंईि रंगिई मधुकर सुंद बनिवनि माया मावई बाइ मध्य समीर fe नाव रमनीय रमणीय नवनव बीर सम्यक कोलि कठिया तवर बार १ महीपति मनई राजइ र कुमार एक पूर्व काव्य
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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