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________________ श्रीपनि जिन विज्य जी इस रचना को गुजराती मानते है। यों यह रचना आशिक में प्रारंभिक गुजराती के कुछ अब्दों को प्रस्तुत अवश्य करती है। गुजराती कवि श्री नरसी मेहता के ली एवं गन्दों आदि का पाशिक साम्म इसमें दिखाई पड़ता है। संभवतः स्वतंत्र में गुजराती भाषा के निर्माण की सीमा रेखा ऐसी ही कृतियों निधारित और प्रस्तुत की जासकती है। कृति की स्था वस्तु देवरत्न सूरि की काम पर किया है और कोई विशेष कृति को प्रायोपान्त देखने पर भी रचनाकार का नाम कहीं देखने को नहीं मिला। अनुमानतः देवरल पुरि के किसी शिष्य या मात दुवारा ही रचा गया होगा। फाय कसा सर्व प्रथम चिराउली के पार्श्वनाथ और सरस्वती का नमन करता है और मंगलाचरण के बाद ही वरित नायक देवरत्नमूरि का वर्णन करता है। देवरत्न हरि अपने समय के जैन आचार्यों में एक ऐतिहासिक पुरुष रहे है। बागमगन्छ के थे। देवरत्नसूरि पाटम में पेधडकुल में उत्पन्न हुए। इनका बचपन का नाम जावळ था। प्रसिद्ध ऐतिहासिक जैन विद्वान पुनिजयानंद सूरि ने १४७में इन्हें अपना पटुटधर बनाया और देवरत्न मूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। देवरत्मसूरि ने अन्ड ब्रहमचर्य सीधा। काम की स्त्री रति को ईच्या ई। उसने अपने पति से देवरत्न को काम बिमोहित र साना मे न करने का प्रयास किया और अपने मित्र मन को लेकर सवाया। मोन और मान साथ काम कोविगे, देवरत्न पर बालक पि, मरों का धान दिया पर बल नायक नहीं मिला। काम सारे मस्त्र प्रयोग निरक काम हार गया, और देवरत्न विनवी। कवि काव्य में अपनी स्थानीय लीवावा है कि किस प्रकार काम परासिमा और मामा ने अपने बीवन को बध ब्रह्मचर्य में काट दिवा की गति इस ब्रहमचारी की गरिमा और भी अधिक मुधर उठी है। - विहाकि पूर्वर काव्य संव .
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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