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| देवरत्न सूरि काम
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(देवरत्नसूरि शिष्य) सं० १४९९
देवरत्नपूरि काम एक सुन्दर ऐतिहासिक बैंड काव्य है। यह रचना सं० १९२६ में ही मुनि जिनविजय जी के द्वारा प्रकाशित कर दी गई थी। कृति का रचना काल सं० १४९९ है एतिहासिक तत्वों की दृष्टि से भी यह कृति महत्वपूर्ण है। कवि की इस रचना में काव्यात्मक सरसता का वीत्व प्रवाहित होता दी पड़ता है । कवि ने लाथमिक प्रयोग प्रकृति वर्णन, आलंकारिक योजना, रसात्मकता, और ध्वन्यात्मकता आदि अनेक गुणों से यह कृति १५वीं शताब्दी के उत्तराध की फामु रचनाओं की बहुत महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है।
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देवरत्न सूरि फाग कृति का वस्तु शिल्प भी अब तक वर्णित फागों के क्या विप से भिन्न 1 का उल्लास नय अनुभूतियों की क्रीड़ा है। यह मधुरि का श्रृंगार है। आल्हादकारी पाव व्यंजना में डूबकर जिस तरह मानव अपने इस दूस कूल कगारों मैघूमने और उतराने लगता है उस समय उसकी रागात्मक प्रवृत्तियां और अधिक सजग हो उठती है और उसकी अभिव्यक्तियों में एक नवोन्मेषानीति का प्रवाह समा जाता है। अतः यही अभिव्यक्ति अनुभूति की उत्कटता लेकर हमारे सामने फूट पड़ती है।
देवरत्नरि काम ऐसी ही रचना है जिसमें कवि जीवन का निवार
मार निमय काम का सौन्दर्य रति जीवन तथा देवरत्न की साधना पर वी के मधुर वर्णन किए है। मामा और भाव अत्यन्त सरल है। कवि ने इसमें अतिरंजना लेख मात्र भी नहीं की। देता है कि ये पुरातन कवि अपनी अनुभूतियों को स्वाद और बानी दे दे। कृति का मर्मन अजय है और रचना का काम नाम भी सार्थक है।
१-र्जर काव्य संचय: श्रीदेवरत्नरि का पू०८६ ० मुनि चिनयजी - बड़ी ग्रन्थ- भूमिका प्र० ७