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________________ ४२१ चई दिसि तणिय सुयालिय बालिय मंडप देसि जस मुख कमल निरुपम पम विउ ससि निबि सरल तरल जसु वीणिय लीणिय रमा निर्ववि गुजरडी गुण वतिय दैतिय सर अवतारि मधुर वयण जब बोलइ तोलइ कुण संसारि सर लिय अंगिलता जिम वा जिम नभतीय वा कि सोरठणी मनि गउलिम कडलिय मानि जला कि सामलडी धण पाख्य बाध्य नयण तर गि हाव भाव नेवि जाणइ आणइ पुणि मनुरं मि सिधुंय सहजि समागिय जागिय लवणिम साणि, अंगि अनोपम चोलिय मोलिय वचन विनागि ढी लिय अनुनागोरिय, गडरिय सोहगपूरि जसु वरवदानि कलंकि पंकि चंदल दूरि चंचल चपल सलूणिय उणिय सहजि न रुपि वापिविलासी विचजण दिक्षणडी रसकूपि बइसि पलिय मोलिय बैलिय माबय रंगि पासकुमर मुष मा मायी र किन अमि चरम चोरि बिचमका कमाइ नेउर नादि कल्पलता करि लइ रेलइ न सावि इपिछति रवि पापड वर गरम में भापरि चिति पास ममाथि जोब लोष कोष साबि रीति इसी प्रकार काव्यात्मक और परम वर्षन कवि ने वर्मत का किया है। यमक की छटा वर्णन को और उत्कृष्ट बना देती है। वसंत्री का फूलना, सौरम का तूफान और मलयानिक की बालिया मी दृष्टव्य है: पिरिवरि गिरिवरि पुरि पुरिवनि बनि परमल सार बीड विल्व जबाइ वी भार बार
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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