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चई दिसि तणिय सुयालिय बालिय मंडप देसि
जस मुख कमल निरुपम पम विउ ससि निबि सरल तरल जसु वीणिय लीणिय रमा निर्ववि गुजरडी गुण वतिय दैतिय सर अवतारि मधुर वयण जब बोलइ तोलइ कुण संसारि सर लिय अंगिलता जिम वा जिम नभतीय वा कि सोरठणी मनि गउलिम कडलिय मानि जला कि सामलडी धण पाख्य बाध्य नयण तर गि हाव भाव नेवि जाणइ आणइ पुणि मनुरं मि सिधुंय सहजि समागिय जागिय लवणिम साणि, अंगि अनोपम चोलिय मोलिय वचन विनागि ढी लिय अनुनागोरिय, गडरिय सोहगपूरि जसु वरवदानि कलंकि पंकि चंदल दूरि चंचल चपल सलूणिय उणिय सहजि न रुपि वापिविलासी विचजण दिक्षणडी रसकूपि बइसि पलिय मोलिय बैलिय माबय रंगि पासकुमर मुष मा मायी र किन अमि चरम चोरि बिचमका कमाइ नेउर नादि कल्पलता करि लइ रेलइ न सावि इपिछति रवि पापड वर गरम में भापरि चिति
पास ममाथि जोब लोष कोष साबि रीति इसी प्रकार काव्यात्मक और परम वर्षन कवि ने वर्मत का किया है। यमक की छटा वर्णन को और उत्कृष्ट बना देती है। वसंत्री का फूलना, सौरम का तूफान और मलयानिक की बालिया मी दृष्टव्य है:
पिरिवरि गिरिवरि पुरि पुरिवनि बनि परमल सार बीड विल्व जबाइ वी भार बार