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________________ ४०४ इसी तरह द्वितीय फागु का भी वर्तत वर्णन देखा जा सकता है: aft वनि कुसुमि हि वहबs वन सहग प्रति पेपिवि बिरहिनि चंपय संपय कंप करं ति वेल मवकली संकुल बकुल कुरइ सच्छं चकुरि महबल सुंदरू कुंद्र रचइ आनंद फल परि भरि विजय रिव करिव वोरिय ग मधुकर सेबिय करुपिय तुरुजिय जिमनुषसँग विहसिय नलिनिय सरवरि तरवरि भमउन जाइ पाडल परिमल सुबिमल पुहविडि कहनि म माइ afe करs करालिथ पालिय जिम मन रंग नारंगी रंग तरंगिन संगिय बहु नव रंगि neering afs लटकर बहक परिमल भूि aree aye gates त्रास पंथिय दूरि फिरि फिरि बनि वमि मधुकर निकर करई कारु जीत जा कर अमरसु समरसु किरि जयका १ दोनों कामों में राजुल की श्रृंगार बब्जा का कम उत्कृष्ट है।राजु का श्रृंगार के विमोर होना कवि afeat gari aaा उसका क्रिया के काव्य प्रवाह का परिचय देता है: सज्जा वर्णन (NEW ST For utsa Tees पारण विमारह बाबावर बी मा बडिराव सिं मानिक्य निपरिक किरि तुरु १- प्राचीन काडा० बॉस ० ८-११।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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