________________
२७४
पीप पयोहर अपछर गूजर धरतीय नारि फागु खेलइते फरि फरि नेमि जिपसर बारि कडि हि पटउली गडमडा उरि एकावली हारी करियलि कंकण मणमय पय नेउर मकारो अवर संबोल रसि रंगेउ नयषे कज्जल रेड आप अंधारीिय काचली, 'किरि ऊनइ उमेह गोरी कैठि नगोदा बीजल जिम भवति देति कति हीराउली दीपति सहणन जाइ सिरि सीदेखि सयथला भमर माला जिसी वीणि
फाय खेलइ मन रंगिहि हंस गमणि मनी १ आगे के छदों में कवि नै नेमिनाथ के आध्यान का बहुत ही संक्षेप में तथा मुम्बर वर्णन किया है। उपमा और उत्प्रयाग में कवि नेमि व राजुल का कुछ ही पंक्तियों में निर्वद वर्णन करता है। फाग खेलती हुई बालाएं नैमि का चरित गाती जाती है तथा उल्लास मैं झूम उठती है। भाषा सरल है। अजूदों का गहन व प्रवाह वर्णनों को उत्कृष्ट बना देता है। अब्दों में थोड़े में ही अधिक कह देने की शक्ति है। मेब रास में इतनी छोटी रचनामें कवि के लिए इससे अधिक कहना असंभव ही था:
काने कुंडल सिरिषड़ीव जड किय सिणगार महर सरे सि गायव मे मिहि बाल कूवार अगर कपूर केरउ (उ र सूकवि तम सविवार विही प्रा बेसइ नै मिजिए रितुरा बीजब हार माहिमा निधि महिमा गुरु गाइकर ग्रहण मंडार सिंध गामल वम सोनका राव देव भरतार हंस सरोवरि बिन मिलमा पावर जिम वपराय पसम नपा शिम सानिय बल मुरुम मुनूजाय देव मिरि रतिया मवर बोडी पुरबर सार पानि मा भाविकपमा जिम पाय भवषार