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किया हो। इस छोटी सी कृति में शांतिनाथ की स्तुति वर्णन, गुजरात के पाटण नगर का वर्णन, बसंत श्री वर्णन आदि बड़े सुन्दर वर्णन मिलते हैं। '
कृति का कथानक बहुत ही छोटा है। छोटे छोटे सूत्रों को मिलाकर ही रचना के विषय का अनुमान लगाया जासकता है कवि ने अपने चरित-नायक जिनवरि के महोत्सव पर सुन्दर वसंत वर्णन किया है। दूरि का बील संयम को देखकर कामदेव अपने ससा वसंत सहित उन पर आक्रमण करता है और मदम पराजित होता है तथा समस्त भक्तगण उनकी जयजयकार कर फाग गाते और सेलते है। कृति की समाप्ति निर्वेद में हुई है तथारचनाकार में इसे दोहा छंद में लिखा है।
इन कृति की मूल प्रति जैसलमेर ग्रन्थ भंडार की एक हस्तलिखित पोथी मैं सुरक्षित है। प्रति की प्रतिलिपि नाइटा जी के पास विद्वयमान है। उन्हीं की प्रतिलिपि से डा० साडेसरा ने इसका सम्पादन किया है।" यहप्रति डित है लगता है एक पत्रा हो गया है अथ से लेकर २० तक की पंक्तियों नहीं मिल पाती और छी और ११वीं पक्तियों के पी छोटे छोटे टुकडे डी मिलते हैं। जो हो, उपलब्ध पाठीर के आधार पर इस रचना के काव्य तथा भाषा सौष्ठव पर विचार किया जा सकता है तथा अद्वयविधि उपलबुध का काव्यों में की जा सकती है। बाढ़ का बहुत सा अंडित है पर
इसकी प्राचीनता
प्रति पर्याय महत्वपूर्ण है।
प्रारम्भ में मंगलाचरण करके कवि में धमलिवाड़ में होने वाले महोत्सव
का चित्रा सींचा है। जिन प्रयोजति पर्व नायक के वंश का परिचय दिया है:संयु, विव वाउलि उरिहार
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१- जिनवेद दूरि फाग:प्रा० का०के०डा०सीडेवरा | पु० ३१-३२ | १-अ मा माइटों की गबाड़ बीकानेर
३- प्रा०का०सं० डा
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सम्मेलन का भाग ४००६ श्री अगरचंद नाहटा का हैक-राजस्थानी का काव्य की परंपरा और विपिष्टता । प्रका डा० भोगीलाल प्र० १३४ ।