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कोमल होता होगा। रासक की परिभाषा देते हुए बागभट्ट ने उसमें ६४ युगलौं (प्लेयर) तक का उल्लेख किया है।' अनेक नर्तकियों और चित्र ताल तथा लय को प्रमुखता दी गई है। इसमें कोमलता और औवधत्य का भी समावेश है । २
सम्भवतः यही रासक फाग का पर्यायवाची हो, क्योंकि आगे विषय परिवर्तन होने पर उसक में वीररस की प्रमुखता के कारण औद्धत्य की प्रधानता हो गई और वे रण प्रधान बन गए और उनका कोमल पक्ष फागु या राख कहलाने लगा हो ।
जो भी हो, इतना स्पष्ट है कि फागु काव्य गेय रूपक है जो आज मी राजस्थान और गुजरात में गाये और सेले जाते है। यह तो हुई फागु के विषय संयोग श्रृंगार की बात पर वियोग या विप्रलंभ श्रृंगार वर्णम में भी फागु काव्य की रचना होती थी। मायिका के वियोग के पश्चातृ नायक से उसका पुनर्मिलन किसी फायु या राम से कम उल्लास का सूचक नहीं था। प्रेम का चरम मिलन और मिलन झुल्क कैसा? अतः तब भी सम्भवतः फागु की रचना अवश्य ही होती रही होगी ।
काय की सामान्य प्रवृत्तियों पर ऊपर प्रकाश डाला गया है पर इसके अतिरिक्त भी फागु सम्बन्धीरचनाएं मिलती है जिनमें विक्यान्तर स्पष्ट परिलक्षित डोक है। वियोग श्रृंगार में नाविका के पुनर्मिलन पर इद उल्लास का एक फामु बखत विलास मिलता है। इसके सम्पादक ने का का विषम विजन और इसके पश्चाद
१- वायुम- काव्यानुवासन ३० १५० ।
२. अनेक नकी यो विश्वास
किट धूमलाहास समृधते ।
३- नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष ५९ १ ० २०११- विरि थुलि मटका ५०२१ ।
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