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फाय काव्य
उल्लासमय अनुपूतियां प्रकृति-प्रदत्त होती है। मानव को राग हर्ष और शाहलाद जन्मजात मनी विकारों और मावों के रूप में उपलब्ध हुए है। रोने, गामे और अपनी अभिव्यक्ति दूसरों तक पहुंचाने का काम वह आदिकाल से करता चला आया है। अतः प्रत्येक रितु के साथ प्रकृति स्वयं उसका बाहवान करती है। ग्रीष्म, वसंत,शिशिर, हेमन्त आदि रितुओं में किसका वा स्वागत नहीं. करता। उसके लिए पतन का भी उत्तमा ही महत्व है जितना प्रीम और शिशिर का। विशेष तौर से अधिक आहलाद और उल्लास का पर्व वसन्त है। फूलों का मादक पराग, अलियों का मुंजन, मौरमित आमल्लिरियां, पंजिक कानम, बौराई डालियां कोयल की कूक, तथा इठलाता मायामिल सारे वातावरण को ही चंबल और दोलायमान कर देता है। आह्लाद मान के स्त्रोत राशि राशि उल्लास को लिए फूट पड़ते है। सौन्दर्य के को किल की हलकी मी पवधवनि सुनाई देने लगती है और मादक वसन्त सिल उठता है। फागु वसन्त का ही मादक गान है।काम को मम्मथ कहा गया है और सम्भवतः यह का मन्मथ का की एक उल्लास है। बस इस पर्व और अब सडास पर काम
का अपनी बापी बो चार मो इनका स्वागत नहीं करेगा। क्या जीवन और नई प्राधारा को कराने वाली बाय की एक मीठी पीर के माहित ना माना है। और मकान को अपने प्रभाव की रंगीत में इयो देखा। बम गा. वा महोत्सव, स्वागत-गीत, सत्य, उल्लास किया बाबारी मान का बीवन में नए उत्साह का उन्मेष करने बाली शक्ति मिला है।
का काम की परम्परा के इतिहास पर विचार करने पर मैं अश की मारामा मा । यो संस्कृत में भी यह पहरित विवाई की।