________________
३४१
मादि की परिवर्तित स्थिति परप्रकार डाला है। इस तरह की कलिकाल संबंधी रचनाएं परवर्ती राजस्थानी कवियों कीअनेक मिलती है।
कवि ने रचना को माय, वस्तु व्वणि ठउ फाग आदि शीर्षकों के अविभाजित करके लिखी गई है। कवि ने वीर जिनेन्द्र तथा सरस्वती का स्मरण कर रास प्रारम्भ किया है।
प्रारम्भ में ही कवि कलियुग की सामान्य प्रवृत्तियों का उल्लेख करता है तथा कलियुग के प्रमाण कहता है। वर्धन सरल वाक्यछोटे भावपूर्ण तथा भावा अत्यन्त सरल है:
वीर जिनेवर पाभिनाजु कहिले कलियम व प्रमाण ers समs बहुलवनी हामि ईण्विवनि यहूद हिव जावि grata वरसई थोड़ा मेड, बोड़ी आयु घना संदेश राति कपि हुआ भूपाल अम्बानी नइ अति विकराल नकरs लोक वनी सुरसार, लोक हुआ बि स विनिरधार afe निरधन दीes दातार कृथवह परि ठिडिमी अवार पुर्व हुई व इतकाल, पापी नर जीवई चिरकाल
औषध मैम
मामान सोरिय विद्या नयि सुजान
अंतरंग
ने बिसाल बिरला बीसह अन्य गाठ
देव रवि हुआ मित्रभाव के न दीसह सरल भाव
कोई न पाइ बोल्या मोल सह नावद पूनिटो कोई न वीस नि गंभीर अवल धीर
विनय विवेक, लौका, काय सब दूर हो गई। बाउस बटन संसार में नहीं रहा कलियुग के प्रभाव से दान और दानदी दोनों मिट गए हैं। परमार्थ का विनाश
और पाक का प्रचार कह रहा है। बना हीन हो गई और कटू वाणी का
गया है:
कीला हार गई मन्दिर परिनंदा छ पकई पूरि
विनय विवेक मया आवार, बाली कोन कर बारि