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रासकार स्वयं प्रसिद्ध मुनि और कवि थे अतः १४३० की कृति में उपलब्ध पाठ से ज्ञात होता है किवासकार ने यह पाठ भी सं० १४१२ में ही म स्वामी के बैंक कैवल्य महोत्सव पर्वपर लिखा हो । प्रति कीमतिलिपि जपयजैन ग्रन्थालय में उपलब्ध है।
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प्रege Te afta मूलक है। प्रसिद्ध जैन तीर्थंकर महावीर के प्रथम गणधर गौतम की साधना का इसमें विस्तृत वर्णन है। घटना प्रधान और पाव प्रधान दोनों का मत है। रास की क्या विचित्र घटनाओं से संजोई गई है, जिनके वर्णन में कवि का काव्य कौशल अपूर्व परिलक्षित होता है।
गौतम का मूल नाम इन्द्रमूर्ति था व गौतम उनका गौत्र । नगध प्रदेश में राजगृह के समीप बबर गांव में उनका जन्म हुआ । उनके देह की ऊंचाई ७ हाथ थी। इन्द्रभूति ५०० शिष्यों के प्रतिभावाली एवं असाधारण विश्वान गुरु थे। एक बार श्री महावीर स्वामी पावापुरी भागे वहां उन्होंने भ्रमवसरण बनाया। हजारों स्त्री पुरुषों व देवताओं को वहां जाते देव गौतम को जयने ज्ञान पर दंभ इजा । वे ५०० शिष्यों सहित महावीर स्वामी से शास्त्रार्थ करने पहुंचे। महावीर ने उसका समाधान वेदों के मानों के किया। इन्ति ने महावीर से दीवा मन कर ली ५०० विव्य भी दीक्षित और गौतम प्रथम गणधर कहलाये ।अनुक्रम से ११ प्रधान वेद माताओं ने महावीर का विम्बत्व स्वीकार किया। गौतम के अतिरिक्त जो भी महावीर के वित होता वह ज्ञान प्राप्त हो जाता था। वीर्य का भाव के मन्दिरवालों से हटकर मौतम ने रास्ते में एक पात्र मैं मनुंठा इवाकर को बीपी व बीर डिलाई बतः मे ५०० वापस
ही हो गए। ५०० को महावीर का समवसरण देते ही कैवल्य हो गया ।इस वर १५०३ मी हो घर पर गौतम को केवल ज्ञान नहीं मिल सका क्योंकि महावीर के प्रति उनके मन में सार राग था। ७२ वर्ष की आयु में गौतम की निकटवर्ती ग्राम में उपदेशार्थमेवर महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया। गौतम को की पीड़ा हुई उन्होंने धोया महावीर मे अन्त समय में मुझे यह सोचकर कि मौन मालक की तरह पीछा कर उसे पश्य मानेगा दूर मे दिया। मुझे
बीकानेर।