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________________ ३२९ ल्युशकुनि ने हनीय बेगि नकुलं सहदेवि सरवर मीहि कढावी दुर्योधन देवि राइ सनाडु समोपीय मीमिति मिस इ गदा पहरि हमीय जांच मनि साइ फोडिल सी विडी त तानु छेदी साधी पाय पराभव न प्रवेति गति मा विराधी (४० ३०-३१) इस प्रकार श्रृंगार, करुण, वीर, रोद्र, बीभत्स आदि भावों के चित्रच कर अन्त में पान्डवों की जैन दीक्षा द्वारा सम्पूर्ण रास का समाहार शाद और निर्वेद भाव में कर दिया है। धर्म घोष का गठन उल्लेखनीय है : कपड़े केवल नानु सामीय ए नेमि जिनेसर साली धामि वा विरत बसावय तु धरई ए बातीय देखि मारिनीकि प जाईल जि नमई ए ---- सामी गनहर पास पांच ए हरिविहि तु लिई प 141 ates ye sitter पिप ममी प ret विचार वर्तमान क्योर पापा व अपर मावति कु बीज वी कुता हिनकी लिए पत्र वियर ह प पवि र सिवपुर पानिकार पाडवा विनिरखा बारच व समषि देवी विजय व मीडन चिदिप बबार (१५-१० )
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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