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ल्युशकुनि ने हनीय बेगि नकुलं सहदेवि
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पाय पराभव न प्रवेति गति मा विराधी (४० ३०-३१) इस प्रकार श्रृंगार, करुण, वीर, रोद्र, बीभत्स आदि भावों के चित्रच कर अन्त में पान्डवों की जैन दीक्षा द्वारा सम्पूर्ण रास का समाहार शाद और निर्वेद भाव में कर दिया है। धर्म घोष का गठन उल्लेखनीय है :
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विनिरखा बारच व समषि
देवी विजय व मीडन चिदिप बबार (१५-१० )