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: पंपान्डव बारित रा:
१४वीं शताब्दी में प्रबन्धात्मक ईसी में लिखे गए समराराम के पश्चात ५वीं साइबी की सबसे प्रमुख कृतिश्री शालिमासूरि बिरपित पंचपान्डव परित राज है। राम परम्परा की यह राम एक प्रमुग की है। विद्वानों ने इस कृति पर किंचित प्रकार होता अवश्य है परन्तु स्वतंत्र रूपमें हमें इस रचना का पाठ हाल ही में प्रकाशित गुर्जर रामावली प्राप्त होता है। सम्पादकों इस पाठ को बड़ौदा की एक प्राचीन प्रति में उपलब्ध होने वाले पाठों में से एक कहा है। रचना वीप्रति महाराज जसविजय के पास सुरक्षित है।
शालिमसूरि परतेश्वर बाहुबली के रचयिता से भिन्न कवि है। अब तक उपलब्ध साओं में मानव पारित रामे वर्षय विषय, क्या-वस्तु व और भाषा सब इन्टियो से नवीन योग दिया है। पालिमसूरि पूर्णिमामा या रास नर्मदा के किनारे स्थित नालद्र नामक नगर में लिया गया। कवि में स्वयं भी अपने समय के लिए परिचय दिया है जिसका उल्लेख सम्पादकीय में भी मिलता है।
. भाविकालीन हिन्दी जैन रचनाओं में अब तक हमें धार्मिक स्थानों परित नायकों, पुराण मोउपदेशों प्राविाि विषय बना ही विवेन मिला पिराकमायाम को क्यामराम स्वीगर करने वाले की पालिसहित
अनुब राम पानों पायोनि महाभारत का राय पति वेनिस मारा
विगबो मी मिलता है।
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