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३१८ संघ उत्सब वर्णन जैन समाज का सदैव से ही सांस्कृतिक पर्व रहा है। कवि ने पूर्ण कौशल के साथ इस छोटे से काग्य में सबको सजाया है।रचना की भाषा सरल राजस्थानी है जिसपर अपक्ष का यत्र तत्र प्रवाह परिलक्षित होता है।मदिरा, पान, युजा, वैश्यागमन, चोरी आदि सामाजिक कृत्यों को भी कवि प्रकार में लाया है। प्राः राम सभी इष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस काव्य को कवि ने यद्यपि रास संज्ञा दी है। पर रास के नाम पर केवल कालान्तर में परिवर्वित प्रवृत्ति अधीर चरित प्रकाशम को होड़कर अन्यबाते नहीं मिलती हैं। संभवतः १५वीं शवादी राशक रचनाओं के शिल्प में परित गम्यों को ही स्थान दिया जाना होगा। क्योंकि रबमा रास, नृत्य, लय,अगल भूत्व मावि वर्षम नहीं मिलते। न कोई रास ही मिलता है तो यह कहा जा सकता है कि राम, बाल, मा युगल नृत्य के वर्णम तथा रास छन्द की उपेक्षा कालान्तर में होना प्रारम्भ हो गया होगा और रास संज्ञा केवल सामान्य चरित मास्यानक काव्यों को पी दे दी जाती होगी। साथ ही उसका नामकरण पूर्व रासकाव्यों की पाणि रास संक्षक श्री रखा जाता होगा।
रचना के अन्त कवि ने परत बास्यों के स्म में मारपाल के इस राख काव्य को अमो मो शक प्रचारित रहने और अमर होने का भाव दिया है। बब तक गुमेकप अपने स्थान पके, बब का से, बब कलाम भूमि और सागर का पार गरमा सेर बहार विद्यमान
या जबरा निगेनाममार पा राणाका मा रायर मानबको प्रा .
मामाह बाब, -झिायर बनायुमा रामनगर
यह सिपाना मावि और नियत होए, पौर निती र राम
मंदा लोष इस प्रकार नबावों मारा गी मे
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म या । टाबार। भाजी विकगडद बम भावपूर्ण