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इसी प्रम का दृश्य प्रस्तुत किया है :
चालीय गयघड माल्हती, प भारती मद वारि, होगी समंवा तुरव ला रहा सई च्यारि বয় আৰু অতীক গন গান্ধা मंस विवन्जिय मिलियलोक कोई जापइसार कि अह चालित परत राउट कि सगर मारियो राया पडा दमन भट्टा कि कम गोविंदो। राया संपही दमन म कि वादीसह नल नरिई कि देवहराउ,
प्रति उपम्बा गोयंता ए नरवइ सुमदार (10-1) कवि में पूरा काव्य रोलादों में लिखा है। बीच में,बस्तु ठंड का भी कर प्रयोग किया गया है। वस्तुद का एक उदाहरण देखिए:
मारि वारी मारि वारीय देस बढारि देस विदेसह तिकरि भबिय लोकजिणि जत्तकारिय पक दाई चाहीसह राय विहार किय रिविध सारिख पोगा की बेग यि जमिनीचा सवार
छ महोद गियुम मर गरि राब) बस्नुसः पूरी रचना को देखते रह का ना
बाकाय मारपाक का परितकाम, वि उसके जीवन विविध घटनाओं और महत्वपूर्ण गोबर सिगरमागमा विजय व परिलवित होती है।
राजका विविध उदाहरणों और स्वाभावगमों पारस्परिक Tatो सामाजिक शान्ति का प्रतीक है। कि इष्टि और
विष्टि में भी प्रस्तुत रचना
मे नाकारी को मगध, कौशाम्बी,बाराक, माटरीपुर, गुवराम, विन्धु बाला, कगानीरस,
पारि, मान्हर, पासवर माविदेशोंबा मारोबायोग मा