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________________ २८७ इवारका आये उनकी रसीली वामी पुनकर गजमुमाल को वैराण्य हो गया। मा के बहुत मना करने पर भी हठी बालक न माना। नेमिनाथ ने दीक्षा दे दी। पहले ही दिन उसने उनसे कैवलय की प्राप्ति का उपाय पूछा। नेमिनाथ ने ईच्या दुबैक रहित होकर तितिा धारव करना बताया। बालक सुकुमाल समशन में गाकर ध्यानस्थ हो गया। इधर उसी का पाणिग्रहण करने के लिए एकमुंदरी लड़की के ब्राहम पिता को जब बात हुमा 'कि इसने बो दीवा लेकर मेरी दरी लड़की का जीवन की मिटा दिया तो उसने विद्या के मर्म गर्म बंगारे लेकर उसके सिर पर डाल दिए। बालक पूरा जलमया पर वो उसे मान हो गया था कि मैं को बात्मा ई जल को केवल शरीर का है। इस तरा साधना व मोर प्राप्ति के लिए बालक मे जीवन उत्सर्ग कर दिया। पापी ब्राह्मण पी कृष्ण को देखते ही पापकरने से मृत्यु को प्राप्त हुआ। मही इस रास का स्था बार है। क्या में घटनाओं का वैविक है औरक्या सूत्र में स्थात्मकता होने के पाठकों का उत्साह पकरस बना रहता है। जैन सुमों में भी गज कुमात का जीवन परिक मिलता है। वस्तुतः पूरा रास कवि ने गजमुमाल की साधना, शिक्षिाव कैवल्य प्राप्ति में प्रसाब बरित वर्ष के म लिया है। मामा की इष्टि से इस रा . हरिवंश कोल ने अपांच गानों तिमा है परन्तु मनकी गापामा सनही मला मातीमा पा समा.. सगरमा का केही भासmar पर गीलीम भाग परिवन का की उपवा लावालसरमा काठीन रहाकवि ने यह हिरवा कर पिनामि की मनाम पाए सिवि रा मार काम्बा पापा ग Fिal
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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