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श पर बिहु दिल पवित्र, नाग चरम देसिमिति पवित्र राबाई पड पाय नपेवियु मेमि पाभि पवन हे विषु चरम महासई सील निदिधव नेमि कुमार पहिलो विधिया नेमि विकृषि पविण पडिकोडिवि पूर्व वैम्ब मवि महा मोहिति
आवादपि पुदि पुनीवर पसल सिधिई परमेसक मंत्र में कवि ने पति के रूप में च और गुणवतो के माप की कामना जिणवर और #मिका या शासन देवी विन पुक्त करने की है।
सिरिजिणवा गुरु सीमा मन हरमासु अभिभारत रस गपि मुगइन राजु साराम बी बाईहरा विद्या
विद्यारर सिहा पट मुगाह - (१७.५६) पुध्यिका' के रूप में कवि का नाम भी मिल जाता है। रचना की भाषा अपांग से प्रभावित है तथा जन साधारण की भाषा ही है। अपने शब्दों की बहुललाहोते हुए भी उसमें समभाषा का प्रवाह है। पदों में सरलता और प्रमान प्रबनता है। रबमा रास (इ) में है। द के अन्त में एक एक विपदी विनता है इसकी पीलिया भी स्पष्ट होती।
प्रकार भाग गया या राड बायपार, और निमावि
meीस पापा काबों भिनाय कायान m
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पसार राशि मिरसि ।।