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यह काल ऐसा संगतिकाल है कि जिसमें एक ओर मैस्कृत के प्रतिभाशाली विद्वान' हुए, दूसरी ओर अपच के महान साहित्यकार हुए, तथा एक ओर बौद्ध सिद्ध, जैन, मत और अन्य धर्म प्रवर्तक कवि उत्पन्न हुए। इन कवियों ने प्रगति और परम्परा का महल समन्बय उपस्थित किशा, संस्कृत में परम्पराजन्य अलंकृत पद्धतियों पर काव्य रखना की ज्या प्रा और अपने कृतिकारों ने तत्कालीम प्रालित देव पाषाओं अर्थात जमपदीय विभाषाओं में काव्य प्रभमन विशा। अत: धर्म, संस्कृति, साहित्य, दर्शन और समाज आदि लगभग सभी क्षेत्रों में इस काल में क्रान्ति हुई। यही नहीं उत्तर भारत की लगभग सभी वर्तमान भाषाओं के उदभव, विकास और प्रगति का इतिहास इस काल में सम्बन्धित है। उत्तर अपच, प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी, जूनी, गुजराती, प्राचीन ब्रज, आदि भाषानों के प्राचीन साहित्य की भी सम्पन्नता का सीधा सम्बन्ध इस आदिकाल से ही है। इन सभी दृष्टियों से आदिकाल का विश्लेषण परमावश्यक
कोर भाषाओं का मादिकाल से सम्बन्ध
भाविक यो एक महत्वपूर्ण घटना हुई वा तर भारत की वर्तमान लोक भाषामों की उत्पत्ति। अपर का स्वर्णकाल वीं से 10वीं पवाबी करता। भवच गायब हो जाने के बाद बोलचाल की भनेक विषाफाओं ने जन्म पागा। अपार जैसी मा की अनेक दाने ई. जिनका का मूला परिवार भाव विभिन्न प्रादेशिक भागों में हमारे सामने है। वो अब काव्य-रचना हो वी वादी तक होती रही परन्तु वीं वादी ही लोक भाकार रख मिन्न होने कमी पापा के इस सपरिवलको ग स्पटमा वकालीन उपलध कृतियों देवा 4 wer । इसी मा उत्तर अपक, कोक भाषा, देशी गोली, जन भाषा, प्राप्य मिलावार्ष, प्राय मास, भट बादि नामों से पुकारी गई और अत्याधुनिक का गुलेरी बीया रानी के विवादों में इसका नामकरण पुरानी हिन्दी पीक विमो बहशों में भी और उपयुक्त।
अकोलारिक पास भई और कोक भावानों ने उसका स्थान प्रान या निश्चित मागे पनि समानों